कुशोक बकुला रिम्पोछे जन्मशती समारोह; सुमित्रा महाजन ने कहा-महान सांसद के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे कुशोक बकुला

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नई दिल्ली (विसंके) : राजधानी दिल्ली के मावलंकर हाल में 19 वें कुशोक बकुला रिम्पोछे (लोबजंग थुबतन छोगनोर) के जन्मशती वर्ष का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह सुरेश सोनी ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। वहीं कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि हिमालयी संस्कृति संरक्षण सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लामा छोसफेल जोत्पा , जूनागढ़ अखाड़े के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरि जी महाराज और समारोह की अध्यक्षता लोकसभा की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने किया।

इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि कुशोक बकुला जैसे महापुरुषों के कृतित्व से दुनिया को परिचित कराने की जरूरत है। सुमित्रा महाजन ने कुशोक बकुला के संसदीय कार्यकाल को याद करते हुए कहा कि लद्दाख की समस्याओं को उन्होंने हमेशा संसद में उठाया। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि वो दुनिया भर में जहां जहां गईं वहां वहां बौद्ध धर्म के विचार और कुशोक बकुला के किए गए काम नजर आए। उन्होंने कहा कि मंगोलिया के राजदूत रहते कुशोक बकुला वहां के गांव गांव घूमे , जिससे वहां शांति स्थापित हो सकी। कुशोक बकुला मंगोलिया में आंदोलनकारियों को अहिंसा के मार्ग पर लेकर आए। संसद में कुशोक बकुला का कृतित्व आज भी सांसदों को महान काम के लिए प्रेरित करता है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहसरकार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा कि 19 वें कुशोक बकुला ने महान कार्य किए लेकिन वो देशभर में उतने लोकप्रिय नहीं हुए जितने होने चाहिए । कुशोक बकुला ना केवल लद्दाख बल्कि पूरे भारत के महापुरुषों की श्रेणी में आते हैं। सुरेश सोनी ने कहा कि कुशोक बकुला अलगाववादियों के बीच राष्ट्र की एकता-अखंडता को मजबूत करने का काम किया। सोनी ने कुशोक बकुला के चर्चित भाषणों के वक्तव्य भी सुनाए। जिसमें उन्होंने जीवनभर जम्मू कश्मीर लद्दाख में राष्ट्रीय एकता के लिए काम किया। उन्होंने कहा कि महापुरुषों को जाति और क्षेत्र विशेष के चश्मे से देखा जाने लगा है। दुनियाभर में बढ़ रहे आतंकवाद के बीच कुशोक बकुला के विचारों पर चलना ज्यादा जरूरी हो गया है।

समारोह के विशिष्ट अतिथि जूनागढ़ के पीठाधीश्वर अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि कुशोक बकुला के विचार आज के समय में सबसे ज्यादा प्रासंगिक हैं। बौद्ध और हिंदू संतों को मिलकर देश की समस्याओं को दूर करने की जरूरत है। हिंदू और बौद्ध संत पूरी दुनिया का नेतृत्व कर सकता है। पूरी दुनिया में बढ़ती हिंसा के बीच लोग बौद्ध धर्म के विचारों के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।

वहीं समारोह के विशिष्ट अतिथि और हिमालयी संस्कृति संरक्षण सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लामा छोसफेल जोत्पा ने कहा कि 19 वें कुशोक बकुला करुणा और दया की प्रतिमूर्ति थे। पूरी दुनिया में शांति प्रेम और भाईचारा स्थापित करने के लिए वो हमेशा याद किए जाते हैं। लामा जोत्पा ने कहा कि कुशोक बकुला पर्यावरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है।

कार्यक्रम के संयोजक और संचालक डॉ. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने कहा कि जब कुशोक बकुला मंगोलिया के राजदूत बनकर गए तभी कम्युनिष्टों का शासन वहां से खत्म हो सका। इस योगदान के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर की संविधान सभा में कुशोक बकुला हमेशा राष्ट्रवादी प्रखर वक्ता रहे , जिसके चलते उस वक्त के अलगाववादी नेता बैकफुट पर रहे। जन्मशताब्दी समारोह के समिति के अध्यक्ष और पूर्व विदेश सचिव शशांक ने बताया कि कुशोक बगुला के जन्मशती के उपलक्ष्य में देशभर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

आए हुए अतिथियों का आभार जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार जवाहर लाल कौल ने जताया। इस मौके पर जवाहर लाल कौल ने कहा कि आचार्य अभिनव गुप्त की तरह कुशोक बकुला के काम से दुनिया को परिचय कराने की जरूरत है। कार्यक्रम का आयोजन कुशोक बकुला रिम्पोछे जन्मशताब्दी समारोह समिति और जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर की तरफ से किया गया।

कुशोक बकुला : संक्षिप्त परिचय

19 वें कुशोक बकुला का जन्म 21 मई 1917 को हुआ था। अब उनके जन्म के सौ बरस पूरे हो गए हैं। उन्होंने 4 नवंबर 2003 को देह त्यागी थी। वे लद्दाख के सर्वाधिक लोकप्रिय-प्रसिद्ध लामाओं में से एक थे। वे भारत के अंतरराष्ट्रीय राजनयिक भी थे। उन्होंने मंगोलिया और रूस में बौद्ध धर्म के पुनरुत्थान के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया। सुदूर मंगोलिया और बेलारूस तक में उनका स्मरण किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने 30 सितंबर को विजयदशमी के अपने संबोधन में कुशोक बकुला का भावभीनी स्मरण किया। 19 वीं कुशोक बकुला श्री लोबजंग थुबतन छोगनोर का राष्ट्रीय नव निर्माण में अहम भूमिका रही है। जम्मू कश्मीर में भारत विरोधी शक्तियों के षडयंत्रों को असफल करने में महाराजा हरि सिंह और पंडित प्रेमनाथ डोगरा के अलावा 19 वें कुशोग बकुला का योगदान ही सर्वाधिक है। उन्होंने एक सच्चे महास्थविर की तरह स्वयं को जन कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। सच्चा महास्थविर निर्वाण प्राप्ति के लिए योग्य होता हुआ भी बार-बार इस संसार में जन्म ग्रहण करता है ताकि सामान्य जन के दुखों का निराकरण कर सके। बकुला ने 20 वीं शताब्दी में यही कर दिखाया। उनके लिए साधना और तपस्या साधारण जन का दुख निवारण ही थी। बकुला का मूल नाम क्या था , इसके बारे में पता पाना तो कठिन हैं।

बौद्ध जगत में बकुला के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। उनके नाम को लेकर एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि बकुला प्रार्थना और ध्यान साधना में मग्न रहते थे। उन्होंने सभी सांसारिक सम्पत्तियों और एषनाओं का त्याग कर दिया था। वे सोने और बिछाने के लिए अब केवल पकुला घास का ही प्रयोग करते थे। पकुला का प्रयोग करने के कारण वे धीरे-धीरे सामान्य जन में बकुल या बकुला के नाम से जाने जाने लगे। 

लोकसभा में कुशोक बकुला

1967 में वे चौथी लोकसभा के लिए लेह क्षेत्र से चुन लिए गए। 1971 में वे एक बार फिर इसी क्षेत्र में 5 वीं लोकसभा के लिए चुने गए। इस प्रकार वे 1977 तक 10 साल लोकसभा के सदस्य रहे।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुशोक बकुला

लद्दाख के लोगों ने संविधान सभा में जाने के लिए कुशोग बकुला से आग्रह किया। वे राज्य की इस संविधान सभा में लेह से निर्विरोध चुने गए। संविधान सभा के चुनावों तक तो शेख मोहम्मद अब्दुल्ला भारत की कसमें खाते थे लेकिन संविधान सभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य भर देने के बाद उनका रवैया बदला। शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता के नाम पर व्यवहारिक रूप में स्वतंत्र राज्य का सपना देखने लगे। ऐसे अवसर पर कशुक बकुला ने व्यापक राष्ट्रहित में मोर्चा संभाला। नव निर्वाचित संविधान सभा का पहला सत्र 31 अक्टूबर 1951 को शुरू हुआ। दूसरे दिन प्रथम नवंबर को बोलते हुए कुशोग बकुला ने आशा व्यक्त की यह सदन उन समस्याओं का समाधान खोजेगा जिनको आज तक हल नहीं किया जा सका।

अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य 

1978 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया। अगस्त 1978 में कुशोग बकुला को आयोग का सदस्य नियुक्त किया गया और वे दिसंबर 1989 तक इस आयोग के सदस्य रहे।

पद्म भूषण सम्मान

भारत सरकार ने कशुक बकुला को 1988 में राष्ट्रपति ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।

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