आपातकाल कि दौरान की क्रूरता सुनाकर अभी भी सिहर उठते हैं अग्रवाल

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काशीपुर। देश में 25 जून 1975 की रात को घोषित आपातकाल के बाद लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई में काशीपुर के लोगों का भी बड़ा योगदान रहा। तत्कालीन दंदिरा सरकार के फैसले के विरोध में काशीपुर के छोटे नीम पर हुए प्रदर्शन में महेश चंद्र अग्रवाल, सुशील कुमार और कृष्ण कुमार अग्रवाल ने अग्रणी भूमिका निभाई थी।

इन सब का गुनाह सिर्फ इतना था कि इन्होंने घोषित आपातकाल का विरोध किया था। जिस पर पुलिस प्रशासन द्वारा देश विरोधी साजिश रचने के आरोप में 17 जुलाई 1975 उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उसके बाद करीब 127 दिन तक नैनीताल के जेल में कारावास काटने के बाद 14 नवंबर 1975 को छोड़ा गया था। लेकिन देश व लोकतंत्र की रक्षा के लिए पीछे नहीं हटे थे।

लोकतंत्र सेनाना महेश चंद्र का कहना है कि आपातकाल के दौरान तत्कालीन कोतवाल उन्हें मिलने के बहाने कोतवाली बुलाए थे। उसके बाद कोतवाली उन्हें हवालात में बंद कर दिया था। उनके बच्चे और पत्नी खाना लेकर कोतवाली मिलने के लिए गए, लेकिन तत्कालीन पुलिस कर्मियों ने परिजन से मुलाकात तो करवा दी थी, लेकिन खाना नहीं खाने दिया था।

उसके बाद तत्काल उन्हें नेनीताल जेल में भेज दिया गया था। उस दौरान जे से कोर्ट आने जाने के दौरान पैर में लोहे के रॉड की छड़ी पहनाकर ले जाया जाता था। जेल में किसी टाइम खाना मिलता था तो किसी समय केवल पानी ही पीकर समय गुजारना पड़ता था। यही नहीं भीषण सर्दी के समय में रात गुजारने के लिए केवल एक कंबल दिया जाता था।

अग्रवाल व उनके अन्य साथी काशीपुर के छोटे नीम और कोतवाली रोड पर प्रदर्शन किये थे। जिस पर उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्हें 127 दिन जेल में काटने पड़े थे। वह बताते हैं कि उनके साथी सुशील अग्रवाल ,रामलाल खुराना, लक्ष्मी नारायण एडवोकेट व हरिशंकर अग्रवाल भी गिरफ्तार कर लिए गए थे। हाथ-पैरों में बेड़ियां पहनाकर नैनीताल जेल में बंद कर दिया गया।

जेल में देश विरोधी साजिश रचने का आरोप स्वीकार करने के लिए पेपर पर हस्ताक्षर कराने का दबाव दिया गया। ऐसा नहीं करने पर तीन दिनों तक यातनांए दी गई। जेल में ऐसा खाना मिलता, जो गले से नीचे नहीं उतर पाता था।

काशीपुर के थे 19 सेनानी
ऊधमसिंह नगर के 21 बंदियों में से 19 काशीपुर के थे। वर्तमान में इनमें से महेश चंद्र अग्रवाल, सुशील कुमार व कृष्ण कुमार अग्रवाल ही जीवित हैं। आपातकाल खिलाफ जेल गए 18 लोगों का निधन हो चुका है।

सरकार की उपेक्षा से आहत सेनानी
लोकतंत्र सेनानियों को आज भी दर्द है कि उनकी जायज मांगों को स्वीकार नहीं किया जाता है। आज तक प्रमाण पत्र जारी हुआ न परिचय पत्र। आपातकाल के अधिकांश विरोधी आरएसएस के स्वयंसेवक थे, फिर भी सरकार उन्हें तवज्जों नहीं दे रही है, जबकि यूपी सरकार ने लोकतंत्र सेनानियों के लिए कानून बना दिया है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भी लोकतंत्र सेनानी परिषद गठित हो, उन्हें उप्र की तर्ज पर सम्मान पत्र मिले। लोकतंत्र सेनानियों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान से हो और उनकी विधवा व बच्चों को भी पेंशन दी जाए। लोकतंत्र सेनानवी महेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि आजीविका चलाने के लिए सेनानियों को कृषि भूमि, पेट्रोल पंप आदि का आवंटन हो और उन्हें रेलवे और रोडवेज आदि में एक सहयोगी समेत यात्रा पास दिया जाए।

हालांकि, लोकतंत्र सेनानियों को केवल 16 हजार रूपये प्रति महीने पेंशन मिल रही है।
इसके अलावा और कोई सुविधाएं नहीं मिल रही है। जबकि, एमपी के लोकतंत्र सेनानियों को 25 हजार रूपये प्रति महीने पेंशन मिल रही है।

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