गाय के गोबर और फूलों से तैयार गुलाल से खेलें होली, काशीपुर के नीरज चौधरी ने तैयार किया उत्‍पाद

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नैनीताल। गोबर से विभिन्न प्रकार की कलाकृति तैयार करने वाले काशीपुर के नीरज चौधरी इस बार होली को भी गोमय बना रहे हैं। वह होली के लिए रंग-गुलाल गाय के गोबर से तैयार कर रहे हैं। भारतीय प्रबंधन संस्थान से प्रशिक्षित नीरज गोबर को प्रसंस्कृत कर इसमें चंदन पाउडर, गुलाब की पंखुडिय़ां तथा चुकंदर व सिंदूरी बीज का प्रयोग करते हैं। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने नीरज के इस प्रयास की सराहना करते हुए होली में इसके प्रयोग का आह्वान भी किया है।

नीरज ने आइआइएम काशीपुर से स्टार्टअप प्रोग्राम के तहत 2018 में गोबर से उत्पाद तैयार करने का प्रशिक्षण लिया था। वह कहते हैं कि वर्तमान में बाजार में होली के केमिकलयुक्त रंगों की भरमार है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। इधर, भारतीय त्योहारों को लेकर राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की तरफ से गोमय उत्पाद बनाने की पहल की गई थी। इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए गाय संरक्षण में जुटे नीरज ने गोबर से प्राकृतिक प्राकृतिक रंग बनाने की विधि विकसित की। इसमें सफल रहने पर वह अब लोगों को गोबर से गुलाल उपलब्ध कराने लगे हैं। इन प्राकृतिक रंगों को बाजार में 400 से 600 रुपये किलोग्राम का मूल्य भी मिल रहा है। स्थानीय स्तर पर बिक्री के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उप्र के वृंदावन आदि शहरों से मिली डिमांड पर 200 किलो रंग भेजा गया।

ऐसे बनाते हैं गोबर से गुलाल    

गोबर को सुखाने के बाद चक्की में पीस बारीक पाउडर बना लेते हैं। इस पाउडर को एक सूती कपड़े में छान लिया जाता है। जिससे गोबर का चूर्ण टेल्कम पाउडर जैसा हो जाता है। इस पाउडर में सिंदूरी बीज के साथ गुलाब जल मिला मिश्रण तैयार करते हैं। थोड़ी देर में पाउडर सिंदूरी रंग में तब्दील हो जाता है। एक बार फिर इस मिश्रण को सुखा लेते हैं। इसके अलावा चंदन पाउडर, चुकंदर, गुलाब की पंखुडिय़ों से भी अलग रंग तैयार किया जा रहा है।

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की पहल पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया

गोमय रंग बनाने को लेकर राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की तरफ से नीरज को प्रोत्साहित किया गया। नीरज के सफल प्रयोग के बाद इन रंगों को बनाने का तरीका सिखाने के लिए उन्हें आयोग ने ऑनलाइन आमंत्रित किया। 100 से ज्यादा युवाओं को नीरज प्रशिक्षण दे चुके हैं। इसमें विभिन्न राज्यों के नवोन्मेषी भी शामिल रहे।

बेसहारा गोवंश को मिलेगा संरक्षण

दूध देने में असमर्थ होने पर अक्सर पशुपालक गायों को बेसहारा छोड़ देते हैं। यदि गोमय उत्पाद की डिमांड बढ़ेगी तो इनके गोमूत्र और गोबर की महत्ता से ही इनका संरक्षण होने लगेगा। यह रोजगार का भी बेहतरीन जरिया है। आवास विकास अपने घर के एक हिस्से में ही यूनिट संचालित कर रहे नीरज गोबर से टाइल्स, मूर्ति, घड़ी, नेम प्लेट, की-रिंग, चप्पल समेत दर्जनों उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इनकी डिमांड देश भर में है।

 

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