हल्द्वानी: हल्द्वानी के अलावा कुमाऊं भर के लिहाज से अहम माने जाने वाले गौला पुल की सुरक्षा को लेकर नए सिरे से काम करने के लिए बजट लोनिवि को नहीं मिल पा रहा। जबकि एनएचएआइ ठेकेदार के जरिये पुल की अस्थायी मरम्मत में पिछले सात महीने से जुटा है। लेकिन यह काम पूरा नहीं हो सका।
बारिश सीजन शुरू होने में तमाम दिक्कतों का सामना भी करना पड़ेगा। ऐसे में इस अहम पुल की सुरक्षा को लेकर सवाल भी खड़े होते हैं। पिछले साल सितंबर में शासन ने भी इसकी रिपोर्ट तलब की थी। पानी के बहाव को सीधा करने के लिए भले नदी चैनेलाइज की जा रही है। लेकिन पिलरों की सुरक्षा को लेकर अब भी कुछ नहीं किया गया।
गौला पुल की एप्रोच रोड अक्टूबर 2021 में आई भारी बारिश के दौरान टूटकर नदी में समा गई थी। जिसके बाद एनएचएआइ को पुल चालू करने का जिम्मा मिला था। 15 दिन के भीतर वाहनों का संचालन शुरू भी हो गया था। पानी के एकतरफा बहाव के कारण पुल की एक तरफ की सड़क ध्वस्त हुई थी। जिस वजह से नदी के तल से इस क्षेत्र में पत्थरों की सुरक्षा दीवार खड़ी करने के साथ नदी को चैनेलाइज करने का काम अब भी जारी है।
मानसूनी बरसात का दौर शुरू होने को है। आइआइटी रूड़की के सुझाव के मुताबिक लोनिवि को स्थायी प्रोटेक्शन से जुड़े काम करने का जिम्मा एनएचएआइ ने दिया है। लेकिन करीब 22 करोड़ का बजट नहीं मिल सका। यानी अब बारिश सीजन के बाद ही इस दिशा में कुछ काम होगा।
ईई लोनिवि अशोक कुमार चौधरी ने बताया कि गौला पुल की सुरक्षा को लेकर स्थायी समाधान करने के लिए एनएचएआइ ने कार्यदायी संस्था बनने के लिए कहा था। जिसके बाद करीब 22 करोड़ का इस्टीमेट बना था। एनएचएआइ के माध्यम से बजट मंजूरी के लिए प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया है।
14 साल पहले टूटा था पुल
गौला पुल का पहले उत्तर प्रदेश निर्माण निगम ने तैयार किया था। लेकिन जुलाई 2008 में यह पुल टूट गया। उस दौरान बीच से पिलर भी धराशाही हुआ था। जिसके बाद वुडहिल इंफ्र ास्टकचर लिमिटेड ने इसे नए सिरे से बनाया। तीन चरण में 364.76 मीटर लंबा पुल बनकर तैयार हुआ था। जिसकी लागत 19.77 करोड़ रुपये आई थी। अब इस पुल को फिर से सुरक्षा की जरूरत है।
हजारों लोगों का रास्ता और बाइपास भी
यह अहम पुल गौला बाइपास पर बना है। इसके अलावा गौलापार और चोरगलिया के हजारों लोगों के हल्द्वानी आने का रास्ता भी है। 2008 में पुल टूटने पर लंबे समय तक लोगों को हल्द्वानी पहुंचने के लिए पहले काठगोदाम जाना पड़ा था। हल्द्वानी से पहाड़ को निकलने वाले भारी वाहनों के लिहाज से भी खासा दिक्कत आई थी।