हल्द्वानी : विदेश से भारत पहुंची लैंटाना घास का उत्तराखंड में दायरा कम करने के लिए वन विभाग ने तैयारी शुरू कर दी है। लालकुआं के पास स्थित डौली रेंज के कैंपस में ग्रास नर्सरी तैयार की गई है। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर घास की उन प्रजातियों को बढ़ावा देना है जो जैव विविधता के साथ वन्यजीवों के लिए भी उपयोगी है। साथ ही लैंटाना का भी खात्मा हो। कुल 14 प्रजाति की घास अभी तक तैयार हो चुकी है। जिसमें हाथी का आहार मानी जानी वाली नरकुल और नेपियर भी शामिल है। भविष्य में जंगल के लैंटाना से प्रभावित अलग-अलग इलाकों को चिह्नित कर वहां यह प्रजाति लगाई जाएंगी।
झाड़ीनुमा घास की प्रजाति लैंटाना जंगल के परिस्थितिक तंत्र से मेल नही खाती। यह अपने आसपास अन्य घास को पनपने नहीं देती। वन्यजीव भी इसे नहीं खाते। पहाड़ से लेकर मैदान तक फैली लैंटाना की झाडिय़ां वनाग्नि को भी भड़काती हैं। पर्यावरणविद व वन विभाग अफसर भी लंबे समय से लैंटाना के लगातार बढ़ रहे दायरे से परेशान हैं। इसी को देखते हुए प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखंड राजीव भरतरी ने इसके उन्मूलन को लेकर प्लानिंग बनाने को कहा था। जिसके बाद तराई पूर्वी वन प्रभाग की डौली रेंज के खुले मैदान में यह ग्रास नर्सरी तैयार की गई। रेंजर अनिल जोशी की देखरेख में 0.27 हेक्टेयर में फैली इस नर्सरी में भाभड़, खश, गोडिय़ा, नेपियर, सरकंडा, कुश, लेमनग्रास, नेपियर-2, औंस, सीरी, मडुवा घास को बड़ी मात्रा में तैयार किया जा रहा है।
दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देती है लैंटाना
लैंटाना ऐसी झाड़ी प्रजाति है, जो अपने इर्द-गिर्द दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देती। साथ ही वर्षभर खिलने के गुण के कारण इसका निरंतर फैलाव हो रहा है। उत्तराखंड का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र होगा, जहां लैंटाना ने दस्तक न दी हो। कार्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व में तो इसने भारी दुश्वारियां खड़ी की हैं। घास के मैदानों पर लैंटाना का कब्जा होने के कारण शाकाहारी वन्यजीवों के भोजन पर मार पड़ी ही है, बाघ, गुलदार जैसे जानवरों के शिकार के अड्डों में भी कमी आई है।
कॉर्बेट में लैंटाना का उन्मूलन
बाघ, गुलदार, हाथी से लेकर अन्य दुर्लभ वन्यजीवों के वास स्थल जिम कॉर्बेट पार्क के जंगलों में भी लैंटाना की बड़े एरिया में मौजूदगी है। इसलिए अक्सर कॉर्बेट प्रशासन वनकर्मियों के माध्यम से लैंटाना के उन्मूलन को अभियान चलाता रहता है। भविष्य में आरक्षित वन क्षेत्र में भी अन्य लाभकारी घास प्रजातियों के रोपण से लैंटाना उन्मूलन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
गेहूं के साथ पहुंची घास
वन विभाग के अफसरों के मुताबिक 1965-70 के बीच अमेरिका से भारत में गेहूं आया था। उस दौरान गेहूं के साथ लैंटाना घास के बीज भी पहुंच गए। खेती के जरिये यह प्रजाति फैलती गई। अपने आसपास अन्य प्रजातियों को न पनपने देने के कारण ही इसे जमीन को बंजर बनाने वाली घास भी कहा जाता है।
लैंटाना घास जंगल के अनुकूल नहीं
सीसीएफ कुमाऊं डा. तेजिस्वनी अरविंद पाटिल ने बताया कि लैंटाना के साथ कुछ अन्य घास भी जंगल के अनुकूल नहीं है। वेस्टर्न सॢकल के तहत आने वाली पांच डिवीजनों में हाथी व अन्य शाकाहारी वन्यजीव हिरण, सांभर आदि की संख्या ज्यादा है। यह घास पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। प्राकृतिक वासस्थल पर भोजन की कमी होने पर यह वन्यजीव आबादी की ओर आ सकते हैं। इसलिए लैंटाना के उन्मूलन को बड़े अभियान के रूप में लेते हुए ग्रास नर्सरी बनाई गई है। धीरे-धीरे इसका विस्तार किया जाएगा।