नैनीताल: पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राज्य के कद्दावर नेता भगत सिंह कोश्यारी भले ही महाराष्ट्र के राज्यपाल बनने के बाद सक्रिय सियासत से दूर हों लेकिन राज्य भाजपा में उनकी धमक अब भी बरकरार है। भाजपा के टिकट वितरण में कोश्यारी की छाप साफ दिखाई दे रही है। कुमाऊं के अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र विधानसभा क्षेत्रों में कोश्यारी के करीबियों पर दाव लगाकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि कोश्यारी उनके लिए कितने जरूरी हैं।
राज्य बनने से पहले उत्तरांचल इकाई के भाजपा अध्यक्ष रहे कोश्यारी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से निकटता की वजह से राज्य के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से पिछड़ गए लेकिन अंतरिम सरकार में ही उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया। 2002 में कोश्यारी के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा लेकिन सरकार नहीं बनी। दिग्गज नेता एनडी तिवारी मुख्यमंत्री बने तो कोश्यारी नेता प्रतिपक्ष।
2007 में भाजपा ने फिर सत्ता हासिल की लेकिन खंडूरी जरूरी के नारे को सार्थक करार देते हुए भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया। फिर असंतोष उभरा तो डॉ निशंक को कमान सौंप दी गई। 2012 के चुनाव में फिर से कांग्रेस सत्ता में आ गई । 2014 में कोश्यारी को नैनीताल सीट से लोकसभा चुनाव लड़ाया। कोश्यारी ने जीत दर्ज की। 2017 में भाजपा 57 सीट के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई तो कोश्यारी की पसंद त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया।
चुनाव से ठीक पहले भाजपा हाईकमान ने कोश्यारी के कभी पीआरओ, भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। अब शिष्य पर फिर से सरकार लाने की जिम्मेदारी है तो गुरु की पसंद का रास्ता तैयार कर दिया गया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार अल्मोड़ा में द्वाराहाट से अनिल शाही, कपकोट से सुरेश गड़िया, धारचूला से धन सिंह धामी, गंगोलीहाट से फकीर राम टम्टा, अल्मोड़ा से कैलाश शर्मा, लोहाघाट से पूरन सिंह फर्त्याल, चम्पावत से कैलाश गहतोड़ी पर कोश्यारी की पसंद की वजह से दांव खेला गया है। अनिल शाही व सुरेश गड़िया कोश्यारी के भरोसेमंद रहे हैं।