रामनगर-कालाढुंगी के बाजारों में मधुमेह रोगियों के लिए तैयार है अमेरिकन प्रजाति का आम

0
175

नैनीताल। इन दिनों बाजार में फलों के राजा आम की धूम है। आम को देखकर सबका जी मचल जाता है। लेकिन मधुमेह रोगियों के लिए यह घातक है। क्योंकि इसमें शुगर की मात्रा काफी अधिक होती है। अच्‍छी की खबर ये है कि आम का स्‍वाद अब मधुमेह रोगी भी ले सकेंगे। जी हां डायबिटि‍क मरीजों के लिए अब खास प्रजाति के आम का फल तैयार हो चुका है। अमेरिकन प्रजाति टॉमी एटकिंन का आम रामनगर-कालाढूंगी क्षेत्र के बगीचों पककर तैयार है। वैसे तो इसे शुगर फ्री नहीं कहा जा सकता है, पर इसमें शु्गर की मात्रा काफी कम होगी है। कालाढूंगी उद्यान विभाग के एडीओ गगन पंत बताते हैं कि इस आम में शुगर की मात्रा काफी कम होती है, इसलि मधुमेह रोगी सीमित मात्रा में इसका स्वाद चख सकते हैं।

जुलाई माह में तैयार

गगन पंत कहते हैं कि अमेरिकन प्रजाति का यह आम जुलाई माह में पककर तैयार होता है। स्वाद में थोड़ा कसैला होता है। उसमें मिठास अन्य आमों की तुलना में बहुत कम होती है। रामनगर में फल उद्यान प्रभारी एएस परवाल कहते हैं कि टॉमी एटकिंन बैगनी रंग का होता है और धीरे धीरे पकने के बाद यह पक कर सुर्ख लाल हो जाता है। जो देखने में ही बेहद खूबसूरत होता है। यह बहुत ही खास तरह का आम है। इस फल पर मक्खी भी नहीं बैठती है। इसकी खाल मोटी होती है।

अभी शौकिया लगाए हैं वृक्ष

उद्यान प्रभारी एएस परवाल कहते हैं कि नैनीताल जनपद में अभी इस आम की खासियत को लोग नहीं पहचान पाए हैं। बागान मालिकों ने अपने-अपने बगीचों में एक या दो ही पेड़ लगाए हैं। जो दस साल पुराने हो चुके हैं। वह अभी इस आम को अपने मित्रों एवम रिश्तेदारों तक भेजने में सीमित हैं। रामनगर और कालाढूंगी क्षेत्र में मुश्किल से अभी अलग-अलग यद्यानों में सौ वृक्ष होंगे। जबकि फल एवम उद्यान प्रभारी परवाल कहते हैं कि हर बगीचे में अन्य आम के साथ टॉमी एटकिंन प्रजाति के आम को लगाने के लिए लोगों को प्रोत्‍साहित किया जाएगा।

इसे खाने से शरीर में कैलरी ज़्यादा नहीं जाती

टॉमी एटकिंन देखने में जितना ख़ूबसूरत है, उतना ही गुणों से लबरेज़ भी। आम तौर पर डायबिटिक लोगों को आम खाने से मना किया जाता है। लेकिन टॉमी एटकिंस की मनाही नहीं है। वजह है इसका टीएसएस, जो 18 प्लस है। यानी इसे खाने से शरीर में कैलरी ज़्यादा नहीं जाती। इसका स्वाद भी कुछ अनूठा है। कम मिठास और खट्टापन लिए। इसे दसहरी की तरह चूसकर नहीं, काटकर खाया जाना ज़्यादा मुफ़ीद है।

देसी प्रजातियों से बेहतर मिलता है मुनाफा

विदेशी प्रजाति का ये आम क्या दसहरी, लखनउआ और सफ़ेदा से ज़्यादा मुनाफ़ा भी दे सकता हैं? जानकार बताते हैं कि एक पेटी दसहरी की क़ीमत ज़्यादा से ज़्यादा 30-40 रुपये किलो के हिसाब से ही आएगी। लेकिन टॉमी एटकिंस के एक आम की कीमत 100 रुपये के करीब बैठती है। इसके फल आधा किलो से ज़्यादा वजन तक के भी होते हैं। ऐसी ही रकम थाईलैंड, बैंगकॉक और मॉरिशस के आमों की भी मिलती है।

कम जगह में लग जाते हैं इस प्रजाति के पौधे

इसके अलावा कुछ और बात भी मायने रखती हैं। मसलन, यहां के आम के पेड़ की ऊंचाई और क्षेत्रफल विदेशी आम के पेड़ों से ज़्यादा होता है। यानी विदेशी आम के पेड़ कम जगह में ज़्यादा संख्या में लगाए जा सकते हैं। दूसरी बात यह कि ऊंचाई में छोटे होने के कारण इनकी देखभाल भी आसान है। दवा के छिड़काव में बर्बादी भी कम होती है। इन आमों का बाज़ार अभी बन रहा है। भारतीय आमों की तुलना में इनके ख़रीदार फ़िलहाल कम हैं, क्योंकि जानकार बताते हैं कि इन विदेशी क़िस्मों के बारे में सबको सही जानकारी नहीं है। लेकिन जो लेते हैं, वे अच्छा दाम देते हैं।

LEAVE A REPLY