हल्द्वानी। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहली बार कैबिनेट में फेरबदल और विस्तार किया गया है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अब उत्तराखंड से रमेश पोखरियाल निशंक की जगह नैनीताल-ऊधमसिंहनगर से भाजपा सांसद अजय भट्ट को जगह दी गई है। उन्हेें राज्य मंत्री बनाया गय। उत्तराखंड भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके अजय भट्ट 2019 में पहली बार पहली बार सांसद चुने गए। राजनीति में आने से पहले वह अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस करते थे। उनका परिवार वकालत से आज भी जुड़ा है। अजय भट्ट की पत्नी भी वकील हैं। वह हाईकोर्ट में उत्तराखंड में सरकार की वकील भी हैं। उनके चार बच्चों में से दो माता-पिता की वकालत की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
अजय भट्ट का जीवन भी काफी संघर्षों भरा रहा है। कम उम्र में ही पिता के गुजर जाने से पढ़ाई तो बाधित हुई, जो बड़े भाई की छत्रछाया में पूरी हुई। कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल से एलएलबी करने के बाद अजय भट्ट की मुश्किलें कम होनी शुरू हुईं। लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह अल्मोड़ा चले गए और कचहरी में वकालत शुरू कर दी। साल 1984 से लेकर 1996 तक उन्होंने वकालत की। इसी दरम्यान उनकी मुलाकात पुष्पा भट्ट से हुई जो खुद भी वकालत करती थीं। शादी तो अरेंज मैरेज हुई लेकिन दोनों शादी से पहले एक दूसरे को अच्छे से जानते थे।
पहली बार लड़े नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव
अजय भट्ट ने अपने जीवन का पहला चुनाव 1989 में द्वाराहाट सीट से नगर पालिका अध्यक्ष का लड़ा था। उस समय किस्मत उन्हें दगा दे गई। अध्यक्ष पद पर अजय भट्ट और प्यारे लाल शाह को बराबर-बराबर मत मिले। जिसके बाद लॉटरी से फैसला हुआ और अजय भट्ट चुनाव हार गए। 1996 में अजय भट्ट पूरी तरह राजनीति में आ गए। 1996 में अविभाजित उत्तर प्रदेश पहली बार रानीखेत से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गए। राज्य गठन के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में और फिर 2012 में भी वह विधायक बने। 2017 में अजय भट्ट विधानसभा का चुनाव रानीखेत से हार गए। उस समय तमाम विरोध के बावजूद केंद्रीय नेतृत्व ने अजय भट्ट पार्टी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा था। माना जाता है कि अगर वह यह चुनाव जीत जाते तो उनका मुख्यमंत्री बनना तय था।
विधानसभा चुनाव में अजीबोगरीब रही भट्ट की किस्मत
2017 में अजय भट्ट अल्मोड़ा की रानीखेत सीट से विधानसभा का चुनाव हारे लेकिन राज्य में भाजपा की सरकार बनी। हैरत की बात है कि रानीखेत तब वह सबसे बड़े अंतर से हारे और राज्य में सबसे ज्यादा विधायकों के साथ भाजपा की सरकार बनी। 2012 में अजय भट्ट रानीखेत से चुनाव जीते लेकिन भाजपा प्रदेश में एक सीट के अंतर के चलते सरकार नहीं बना सकी। भाजपा को 31 जबकि कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं। अजय भट्ट नेता प्रतिपक्ष बने। 2007 में में भी ऐसा ही इत्तेफाक हुआ। अजय भट्ट मात्र 205 वोटों से कांग्रेस के करण माहरा से चुनाव हार गए और भाजपा 34 सीटों के साथ बहुमत में आ गई।
2002 में अलग उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद विधानसभा का यह पहला चुनाव था। अजय भट्ट ने रानीखेत की सीट जीत गए। पहली विधानसभा में वे पहुंच तो गए लेकिन राज्य में भाजपा की सरकार नहीं बनी। अंतरिम सरकार भाजपा की ही थी लेकिन चुनावों में उसे कांग्रेस से हार मिली 1996 में अजय भट्ट ने अविभाजित उत्तर प्रदेश पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। रानीखेत से बड़ी जीत दर्ज की। पर किसी पार्टी को बहुमत न मिलने के कारण राष्ट्रपति शासन लग गया। छह माह तक विधायकों का शपथग्रहण नहीं हो पाया था।