हल्द्वानी । लंबी जद्दोजहद के बाद निजी अस्पतालों को कोविड मरीजों के इलाज की अनुमति दे दी गई है। इसके लिए शहर के छह निजी अस्पताल चयनित किए गए हैं। सीएमओ डॉ. भागीरथी जोशी ने इन अस्पतालों को 25-25 बेड कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित रखने के आदेश कर दिए हैं। सीएमओ की ओर से जारी आदेश में कहा गया कि कोविड-19 संक्रमण बढ़ रहा है। ऐसे में चयनित छह निजी अस्पताल कोरोना मरीजों का इलाज करेंगे। आइसोलेशन को ध्यान में रखते हुए 25-25 बेड निर्धारित करेंगे। शासन से निर्धारित शुल्क पर ही इलाज करना होगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि आदेश का पालन नहीं करने पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
ये है निजी अस्पताल
केएचआरसी, नीलकंठ अस्पताल, विवेकानंद अस्पताल, साईं अस्पताल, सेंट्रल अस्पताल, बृजलाल अस्पताल।
आपदा के समय निजी अस्पतालों को सहयोग करना होगा
सीएमओ डॉ. भागीरथी जोशी ने बताया कि आपदा के समय निजी अस्पतालों को सहयोग करना होगा। वैसे अभी भी इन अस्पतालों में कोरोना मरीज आ रहे हैं। जांच के बाद एसटीएच भेजे जा रहे हैं। जिस तरह एसटीएच में इलाज हो रहा है। उसी तरह अपने यहां भी इलाज करें। सभी को शासन की ओर से जारी आदेश का पालन करना होगा।
मरीजों के मिक्सिंग होने पर संक्रमण का खतरा
सीएमओ की ओर से आदेश मिलने के बाद रविवार की शाम को छह निजी अस्पताल संचालकों ने वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये बैठक की। अस्पताल संचालकों का कहना था कि शहर के इन्हीं छह अस्पतालों में सबसे अधिक नॉन कोविड मरीज हैं। ओपीडी में भी इन्हीं मरीजों की संख्या अधिक रहती है। उनका कहना था, अधिकांश अस्पतालों के पास प्रवेश व निकासी द्वार अलग-अलग नहीं हैं। केवल एक फिजीशियन है। जूनियर डॉक्टर भी नहीं हैं। ऐसे में एक ही डॉक्टर कैसे कोविड मरीज व अन्य मरीजों को देखेगा? यहां तक कि नर्सें ट्रेंड भी नहीं हैं, जो नर्सें व वार्ड ब्वाय कार्यरत हैं, वो कोविड वार्ड में काम करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। संचालकों ने कहा, स्वास्थ्य विभाग ने हमें यह नहीं बताया कि हमें कोरोना के कौन से लेवल का मरीज भर्ती करना है। सबसे अधिक दिक्कत सभी तरह के मरीजों के मिक्सिंग होने पर संक्रमण बढऩे का खतरा रहेगा।
एक आइसीयू में कैसे होगा इलाज
अस्पताल संचालकों का कहना है कि अधिकांश अस्पतालों में एक ही आइसीयू है। उसी आइसीयू में हार्ट व गुर्दे के मरीज भी भर्ती हैं। ऐसे में कोविड पेशेंट को आइसीयू की जरूरत पडऩे पर कैसे रखा जाएगा?
दिल्ली मॉडल को लागू करने की मांग
जिला उद्यान अधिकारी भावना जोशी ने कहा कि दिल्ली में घनी आबादी है। उन्हें घर पर ही इलाज की अनुमति देने के साथ ही पल्सऑक्सीमीटर व दवाइयां दी जाती है। इससे ऑक्सीजन का सैचुरेशन नापा जाता है। अगर सैचुरेशन 94 से कम हो जाता है तब उसे अस्पताल में एडमिट के लिए बुलाया जाता है। 94 से ज्यादा होता है तो उसे भर्ती करने की जरूरत नहीं है। डॉक्टरों ने इस मॉडल को लागू करने की मांग की है। इससे बेवजह अस्पताल में आइसोलेशन होने की जरूरत नहीं पड़ेगी।