नैनिताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दायर जनहित याचिकाओं की अर्जेंट सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की। याचिकाकर्ता ने एक अर्जेंसी प्रार्थना पत्र दाखिल कर कोर्ट से अनुरोध किया था कि महामारी को देखते मामले की त्वरित सुनवाई की जाए।
याचिकाकर्ता ने शपथपत्र के माध्यम से कहा कि वर्तमान में हॉस्पिटलों में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन और पीपीई किट उपलब्ध नहीं हैं। पीड़ितों से एंबुलेंस का एक किलोमीटर का किराया 5000 हजार लिया जा रहा है। शवों को जलाने के लिए श्मशान घाटों और घाटों में लकड़ियों की भारी कमी है। हॉस्पिटलों में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं है। होम आइसोलेशन वाले मरीजो को सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं।
आरटीपीसीआर टेस्ट धीमी गति से हो रहे हैं। हालत यह है कि अभी 30 हजार टेस्ट रिपोर्टें पेंडिंग पड़ी हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि हल्द्वानी, हरिद्वार व देहरादून में आरटीपीसीआर वे रैपिड एंटीजन टेस्ट 30 से 50 हजार प्रतिदिन कराए जाएं। कहा कि होम आइसोलेशन टेस्ट बढ़ाएं। उत्तराखंड में 2500 रजिस्टर्ड दंत चिकित्सक हैं और कोविड सेंटरों में डॉक्टरों की कमी है तो सरकार इनसे मदद ले।
मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने मामले में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी को निर्देश दिए हैं कि होम आइसोलेशन वाले मरीजों को तत्काल सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। आरटीपीसीआर टेस्ट कराने के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल व लैबों का नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन कराकर उनमें भी शीघ्र टेस्ट कराए जाएं। सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने अपने क्षेत्रों में आशा वर्कर व एनजीओ के माध्यम से संक्रमित क्षेत्रों को चिह्नित करें ताकि पीड़ितों को शीघ्र उपचार मिल सके।
किस हॉस्पिटल में कितने बेड खाली पड़े हैं और किस हॉस्पिटल में ऑक्सीजन उपलब्ध है उसकी जानकारी रोज उपलब्ध कराएं। श्मशान घाटों की व्यवस्था दुरुस्त की जाए। स्वास्थ्य सचिव को यह भी निर्देश दिए हैं कि गरीब व जरूरतमंद लोगों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना व दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत उपचार के लिए हेल्थ कार्ड शीघ्र उपलब्ध कराएं। जिससे वे अधिकृत हॉस्पिटलों में अपना उपचार करा सकें। मामले के अनुसार अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल ने क्वारंटीन सेंटरों व कोविड अस्पतालों की बदहाली और उत्तराखंड वापस लौट रहे प्रवासियों की मदद और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने को लेकर हाईकोर्ट में अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कीं थीं।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि उत्तराखंड में कोरोना से मरने वालों की दर सभी राज्यों से ज्यादा है। देश मे कोरोना से मरने वालों की दर 1.514 जबकि उत्तराखंड में 1.542 प्रतिशत है। कोट ने कहा कि यह एक चिंता का विषय है। सुनवाई के दौरान स्वाथ्य सचिव अमित नेगी कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हुए। कोर्ट ने इन सभी बिंदुओं पर की गई कार्यवाही की रिपोर्ट 7 मई तक कोर्ट में पेश करने को कहा है और स्वयं भी पेश होने को कहा है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 मई की तिथि नियत की है।
एसटीएच के उपनल कर्मियों की वहीं करें रहने खाने की व्यवस्था
प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर दायर जनहित याचिकाओं की अर्जेंट सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) में जो उपनल कर्मचारी हैं, उनकी वहीं खाने व रहने की व्यवस्था की जाए। उनके घर जाने से उनका परिवार प्रभावित हो रहा है।
सुशीला तिवारी अस्पताल में रामनगर से आने वाले कोरोना पीड़ितों का भार बढ़ रहा है इसलिए रामनगर में भी एक कोविड सेंटर बनाया जाए। सरकार इस पर शीघ्र विचार करें। आईसीएमआर की गाइड लाइन के अनुसार कोविड सेंटर, हेल्थ सेंटर व केयर सेंटरों में कोरोना पीड़ितों का इलाज होना था जिनमें प्राइवेट अस्पताल भी शामिल हैं। ये प्राइवेट हॉस्पिटल ऐसे कोरोना पीड़ितों का रजिस्ट्रेशन नहीं कर रहे हैं जिनका ऑक्सीजन लेवल 92 से कम हो गया है। जिस पर कोर्ट ने प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है जो पीड़ितों की शिकायतों को सुनेंगे और कार्यवाही करेंगें।
कोर्ट ने प्रत्येक जिले में एक कोविड से संबंधित हेल्थ पोर्टल बनाने को कहा है जो हर घंटे में हेल्थ से संबंधित व हॉस्पिटलों में आक्सीजन बेड, दवाओं सहित अन्य जानकारी लोगों को देगा। कोर्ट ने मरीजों से अधिक चार्ज लेने वाले एंबुलेंस मालिकों के खिलाफ भी कार्रवाई करने को कहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में वेक्सीनेशन के लिए नेट न चलने से ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने में दिक्कत आ रही है और उन्हें वैक्सीन नही लग पा रही है। ऐसे में उन्हें बिना रजिस्ट्रेशन के वैक्सीन लगाई जाए। कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजरी हो रही है। इसे रोकने के लिए कोर्ट ने ड्रग्स इंस्पेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि इस पर क्यूआर कोड लगाया जाए, जिससे इसकी कालाबाजारी पर रोक लग सके।