वर्ष 1980 से उत्तराखंड जल संस्थान से निष्कासित केएस राणा को 41 साल बाद हाईकोर्ट से न्याय मिला है। कोर्ट ने उत्तराखंड जल संस्थान एवं गढ़वाल जल संस्थान को याची राणा को सभी देयकों का भुगतान समेत पेंशन एवं सेवानिवृत्ति के लाभ देने का आदेश दिया है। जल संस्थान ने कर्मचारी राणा को उनके कार्यकाल में 240 दिन काम नहीं करने का आरोप लगाकर विभाग से बाहर कर दिया था।
एकलपीठ ने उत्तराखंड जल संस्थान की याचिका को आधारहीन पाते हुए निरस्त कर दिया। सुनवाई न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ में हुई। देहरादून निवासी कान सिंह राणा ने वर्ष 1980 में श्रम न्यायालय, देहरादून में याचिका दायर की। इसमें कहा कि उन्हें उत्तराखंड जल संस्थान ने 1980 में बिना कारण एवं नोटिस के विभाग से निष्कासित कर दिया था, जिसे उन्होंने श्रम न्यायालय में चुनौती दी। वर्ष 2006 में श्रम न्यायालय ने उनके पक्ष में आदेश दिया। श्रम न्यायालय के आदेश को गढ़वाल जल संस्थान एवं उत्तराखंड जल संस्थान ने हाईकोर्ट में यह कहकर चुनौती दी कि श्रम न्यायालय ने उनका पक्ष नहीं सुना।
बिना विभागीय पक्ष सुने उनके खिलाफ एकपक्षीय आदेश पारित कर दिया गया। पूर्व में हाइकोर्ट ने गढ़वाल जल संस्थान एवं उत्तराखंड जल संस्थान को निर्देश दिए थे कि वह दोबारा से श्रम न्यायालय में अपनी आपत्ति पेश करें। श्रम न्यायालय ने उनकी आपत्ति को निरस्त कर फिर से याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया। जल संस्थान ने अपनी आपत्ति में कहा था कि उक्त कर्मचारी ने अपने कार्यकाल में 240 दिन कार्य नहीं किया है, इसलिए विभाग ने उन्हें निष्कासित कर दिया था।श्रम न्यायालय के दोबारा दिए गए इस आदेश को गढ़वाल जल संस्थान एवं उत्तराखंड जल संस्थान ने फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी। जिसमें मंगलवार को सुनवाई के बाद एकलपीठ ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम एवं सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए याची के हक में निर्णय दिया। कोर्ट ने गढ़वाल एवं उत्तराखंड जल संस्थान को याची राणा के समस्त देयकों, पेंशन सहित सेवानिवृत्ति लाभ देने के आदेश दिए हैं। एकलपीठ ने श्रम न्यायलय के आदेश को सही पाया। वर्तमान में याचिकाकर्ता कान सिंह राणा की उम्र करीब 78 वर्ष है।