हल्द्वानी : रामपुर से काठगोदाम तक बनने वाले फोरलेन हाईवे की रफ्तार उत्तराखंड की सीमा में आते ही सुस्त हो गई। पंतनगर गेट से आगे हल्द्वानी की तरफ काम लगभग ठप पड़ा है। एनएचएआइ ने 2017 में सद्भाव कंपनी को निर्माण का जिम्मा सौंपा था। काम शुरू होने से अब तक दो बार समय-सीमा बढ़ा दी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। एनएचएआइ के जिम्मेदार अफसरों का कहना है कि एक सप्ताह बाद कंपनी फिर से काम शुरू करेगी। छह माह का समय और बढ़ाने के लिए हेड ऑफिस से अनुबंध होना है। बहरहाल, बरेली रोड से सटी ग्रामीण आबादी धूल और गड्ढों का दर्द झेलने को मजबूर है।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने अक्टूबर 2017 में हाईवे को फोरलेन बनाने का काम शुरू करवाया था। दिसंबर 2019 में समय सीमा समाप्त होने के बावजूद काम पूरा नहीं होने पर निर्माणदायी कंपनी सद्भाव को पहले अक्टूबर 2020 और फिर मार्च 2021 तक की मोहलत दी गई, मगर कोई खास फायदा नहीं हुआ। वर्तमान स्थिति यह है कि बरेली रोड पूरी तरह से बदहाल है। कंपनी ने काम ही बंद कर दिया।
एनएचएआइ के अधिकारी इसके पीछे बैंक से जुड़े मामले व जमीनी विवाद को वजह बताते हैं। वहीं, काम अटकने से बरेली रोड से सटी करीब 50 हजार की आबादी धूल और गड्ढों की परेशानी को झेल रही है। लापरवाही का आलम यह है कि धूल को रोकने के लिए पानी का छिड़काव तक नहीं हो रहा। मुख्य हाईवे होने के कारण स्थानीय लोगों के अलावा पर्यटकों की गाडिय़ां व अन्य बड़े वाहन भी 24 घंटे यहां से गुजरते हैं। बदहाल सड़क उनके सफर को और तकलीफदेह बना रही है।
49 किमी सड़क का बजट 560 करोड़
उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड को जोडऩे वाला यह हाईवे दो चरणों में बनेगा। रुद्रपुर बार्डर से काठगोदाम नारीमन चौक तक 49 किमी सड़क का बजट 560 करोड़ है। तीनपानी से लेकर काठगोदाम तक का बाइपास पहले ही लोनिवि से एनएचएआइ को ट्रांसफर हो चुका है। लोनिवि के इस बाइपास की स्थिति ठीक है। मोटाहल्दू के पास निजी जमीन अधिग्रहण का पेच भी प्रोजेक्ट में अड़ंगा डाल रहा है।
टुकड़ों में हुआ काम, लोगों के लिए संकट
नैनीताल सीमा के बाद टुकड़ों में किया काम आफत बन चुका है। पंतनगर से लालकुआं की तरफ करीब एक किमी सड़क बनी। उसके बाद हाथी कॉरीडोर विवाद के चलते चार किमी का हिस्सा सुभाषनगर बैरियर तक पूरी तरह छूट गया। आगे लालकुआं के वीवीआइपी गेट तक आधा किमी काम हुआ। इसके बाद लालकुआं का हिस्सा अधूरा है। आगे लालकुआं से हल्दूचौड़ तक काम हुआ। लेकिन हल्दूचौड़ से तीनपानी के बीच छुटमुट काम हुआ। कहीं एक साइड सड़क बनाई तो कहीं डायवर्जन काम अधूरा छोड़ दिया।
जमीन नहीं मिली, फॉरेस्ट से भी दिक्कत
एनएचएआइ के परियोजना निदेशक योगेंद्र शर्मा का कहना है कि जब काम शुरू हुआ तब सिर्फ 11 प्रतिशत लैंड ही मिल सकी। वन भूमि ट्रांसफर से जुड़े मामलों की वजह से भी दिक्कत आई। इसलिए जिस जगह जमीन मिली, वहां पहले काम किया गया। मुख्य सचिव स्तर पर अक्सर इन प्रकरणों को लेकर बैठक होती है। फिलहाल कई मसलों को सुलझा लिया गया है। उम्मीद है कि एक हफ्ते में काम शुरू हो जाएगा।