श्रीनगर। बदरीनाथ हाईवे पर रविवार को कलियासौड़ के पास हुए दर्दनाक हादसे में दो लोगों ने अपनी जान गवां दी। वहीं एक किशोरी जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है। मृतकों के परिजनों ने बताया कि वह लोग धारी देवी मंदिर जाने की बात कहकर गए थे। लेकिन वह धारी से आगे खांकरा की ओर चले गए। तभी वापसी में श्रीनगर से करीब 16 किलोमीटर दूर कलियासौड़ में उनकी कार अनियंत्रित होकर अलकनंदा नदी (श्रीनगर जल विद्युत परियोजना झील) में जा गिरी।
हादसे में कार स्वामी और उनके एक रिश्तेदार की पानी में डूबने से मौत हो गई, जबकि कार स्वामी की बेटी की ऊपर ही छिटकने से जान बच गई। पुलिस और एसडीआरएफ ने मृतकों को गढ़वाल विवि के कर्मचारी देवेंद्र सिंह (52) पुत्र रविराम, बड़ी बेटी के देवर प्रवीण कुमार (28) पुत्र हर्षमणि निवासी त्यागणी पौखाल (टिहरी) के शव कार के अंदर से निकाल लिए हैं।
वहीं, उनकी बेटी बेटी दिव्यांशी (16) खाई में लुढ़कते हुए ऊपर ही छिटक गई, जिसे बचा लिया गया। जबकि देवेंद्र और प्रवीण कार के अंदर ही रह गए। पुलिस और एसडीआरएफ ने मशीनों की मदद से कार को पानी से बाहर निकालते हुए कार के अंदर से दोनों मृतकों के शव निकाले हैं। चैकी प्रभारी श्रीकोट महेश रावत ने बताया कि दिव्यांशी का अस्पताल में उपचार चल रहा है। उसके माथे और हाथ में चोट है। उसने बताया कि कार पिता चला रहे थे।
दिव्यांशी को बचाने एक अज्ञात युवक देवदूत की तरह आया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कार के गिरने के दौरान वहां से अन्य वाहन भी गुजर रहे थे। जैसे लोग अपने वाहनों से बाहर आए, तो उन्होंने दिव्यांशी को नदी किनारे गिरे देखा। इन्हीं वाहनों में शामिल एक कार में सवार युवक बिना किसी देरी के सीधी खाई में दौड़ पड़ा और दिव्यांशी को कंधे में अन्य लोगों की मदद से ऊपर ले आया।
कार से दो मृतकों के शवों को बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू टीम को खासी मशक्कत करनी पड़ी। ड्राइविंग सीट पर बैठे कार स्वामी के शव को सीट बेल्ट काटकर बाहर निकलना पड़ा। इस दौरान घटनास्थल पर मौजूद लोगों में पहाड़ में भी सीट बेल्ट की अनिवार्यता को लेकर खासा गुस्सा देखा गया। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि यदि कार स्वामी ने सीट बेल्ट नहीं पहनी होती तो शायद बाहर छिटकने से उनकी भी जान बच सकती थी।
युवा उक्रांद जिलाध्यक्ष गणेश भट्ट, नगर पालिका पार्षद अनूप बहुगुणा और कांग्रेस नेता जगदीश भट्ट का कहना है कि पहाड़ की भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए यहां सीट बेल्ट को अनिवार्य किया जाना किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है। पर्वतीय रूटों पर या तो वाहनों में आमने-सामने टक्कर होती है या फिर अनियंत्रित वाहन के सीधे खाई में जाने से उसमें सवार लोगों की जान भी चली जाती है, लिहाजा पहाड़ के लिए सीट बेल्ट की अनिवार्यता को खत्म किया जाना चाहिए।