पौड़ी। संवाददाता। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पाबौ ब्लॉक का छोटा सा गांव पोखरी। पलायन की मार से यह गांव भी बुरी तरह त्रस्त है। बावजूद इसके गांव की दस हेक्टेयर भूमि में लहलहा रही जड़ी-बूटियों और बारानाजा (बारह प्रकार के अनाज) की फसल एक परिवार के पुरुषार्थ की कहानी बयां कर रही है।
यह संभव हो पाया दो दशक तक मुंबई में जीने की राह तलाशते रहे 55 वर्षीय रामकृष्ण पोखरियाल की घर वापसी से। उन्होंने हाड़तोड़ मेहनत कर गांव को सरसब्ज ही नहीं बनाया, अन्य लोगों को स्वरोजगार व स्वावलंबन के साथ पर्यावरण संरक्षण की भी सीख दे रहे हैं।
खानदानी वैद्यकीय परंपरा को चैथी पीढ़ी में भी जीवित रखे हुए रामकृष्ण ने गांव की बंजर भूमि को हरा-भरा करने की ठानी तो पलभर में मुंबई से दो दशक का नाता तोड़ सीधे गांव की राह पकड़ ली। शिक्षक पिता वैद्य राजाराम पोखरियाल के सानिध्य में पारंपरिक जड़ी-बूटियों के नुस्खे सीखे और जुट गए हरियाली की बयार लौटाने में। पहले स्वयं की जमीन को सींच वहां पौधे रोपे और धीरे-धीरे खेतों को सरसब्ज करने का यह दायरा कुटुंब की दस हेक्टेयर भूमि तक फैल गया।
मौजूदा समय में उनके खेतों में तेजपात के पांच हजार, रीठा के 250, अखरोट के 200, समोया व लेमनग्रास के 50-50 हजार पेड़ लहलहा रहे हैं। ठेठ पहाड़ी आबोहवा में जीने वाले रामकृष्ण के परिवार के आंगन में तीन दर्जन बकरियां और एक दर्जन गाय-भैंस भी मौजूद हैं। रामकृष्ण के मुताबिक, उन्होंने खेती के साथ ही वैद्यकीय सेवाओं के जरिए ही बेटी को एमबीए और बेटे को बीटेक की पढ़ाई कराकर अपने पैरों पर खड़ा किया है।