- चीन सीमा तक सड़क बनने से देश सामरिक रूप से मजबूत हुआ है।
- यह सड़क बनने से कैलास मानसरोवर यात्रा भी सुगम होगी।
- सेना और आइटीबीपी, एसएसबी के जवान अग्रिम चैकियों तक वाहनों से पहुंच सकेंगे।
- अब कैलास मानसरोवर यात्रा 80 फीसद यात्रा भारत में और 20 फीसद यात्रा चीन में वाहनों से होगी।
- रक्षामंत्री ने हरी झंडी दिखाकर आइटीबीपी व एसएसबी के छोटे वाहनों को धारचूला के लिए रवाना किया।
- ये वाहन शनिवार सुबह धारचूला से चीन सीमा को रवाना होंगे।
पिथौरागढ़। देश को चीन सीमा तक जोडने के लिए बनाया गया गर्बाधार- लिपूलेख मार्ग आज शुक्रवार को राष्ट्र को समर्पित कर दिया गया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली से इसका लोकार्पण 11.30 बजे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से किया। उन्होंने कहा कि चीन सीमा तक सड़क बनने से देश सामरिक रूप से मजबूत हुआ है। यह सड़क बनने से कैलास मानसरोवर यात्रा भी सुगम होगी। सेना और आइटीबीपी, एसएसबी के जवान अग्रिम चैकियों तक वाहनों से पहुंच सकेंगे।
उन्होंने सड़क निर्माण के लिए बीआरओ की सराहना की और कहा कि इस क्षेत्र की दुर्गमता को देखते हुए सड़क निर्माण चुनौतीपूर्ण था। अपने चार मिनट के संबोधन में रक्षा मंत्री ने कहा कि अब कैलास मानसरोवर यात्रा 80 फीसद यात्रा भारत में और 20 फीसद यात्रा चीन में वाहनों से होगी। इसके बाद रक्षामंत्री ने हरी झंडी दिखाकर आइटीबीपी व एसएसबी के छोटे वाहनों को धारचूला के लिए रवाना किया। ये वाहन शनिवार सुबह धारचूला से चीन सीमा को रवाना होंगे।
एतिहासिक पल की गवाह बनी नैनीसैनी हवाईपट्टी
उद्घाटन समारोह नैनीसैनी हवाईपट्टी पर आयोजित किया गया। यहां बीआरओ के मुख्य अभियंता विमल गोस्वामी, विवेक भूषण, ओसी कर्नल सोमेंद्र बनर्जी, जिलाधिकारी डॉ. वीके जोगदंडे, पुलिस अधीक्षक प्रीति प्रियदर्शिनी भी मौजूद रहीं।
सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण
चीन सीमा तक बनी सड़क सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इसे नेपाल सीमा के समानान्तर बनाया गया है। त्रिकोणीय अंतरराष्ट्रीय सीमा की इस सड़क से क्षेत्र में तैनात भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और एसएसबी को खासी सुविधा मिलेगी। जवानों की सीमा क्षेत्र तक आवागमन आसान होगी और साजो-सामान पहुंचाने में भी मदद मिलेगी। अभी तक यह काम घोड़े- खच्चरों से लिया जाता था। अंतिम सीमा क्षेत्र तक पहुंचने में धारचूला से चार दिन का समय लगता है, लेकिन सड़क बनने से एक दिन में चीन सीमा तक का सफर पूरा हो जाएगा।
अंतिम भारतीय पड़ाव तक आसान हुई आवाजाही
गर्बाधार- लिपूलेख मार्ग कैलास मानसरोवर यात्रियों के लिए विशेष लाभकारी साबित होगा। बीआरओ ने गर्बाधार से अंतिम भारतीय पड़ाव नावीढांग तक सड़क तैयार कर कैलास मानसरोवर यात्रियों को भी बड़ी सौगात दी है।
तो मालपा में बाधित नहीं होगी यात्रा
कैलास मानसरोवर यात्रा मालपा क्षेत्र में सर्वाधिक बाधित होती रही है। कठोर चट्टान वाले इस इलाके में अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं। तीन वर्ष पूर्व यहां आई भीषण आपदा के कारण यात्रा को बीच में ही रोकना पड़ गया। बीते वर्ष भी भूस्खलन के कारण यात्रा करीब 15 दिनों तक बाधित रही। अब सड़क तैयार होने से यात्रा में आसानी होगी।
2006 में शुरू हुआ था निर्माण
सामरिक महत्व को देखते हुए वर्ष 2006 में गर्बाधार से लिपूलेख तक सड़क निर्माण शुरू हुआ। वर्ष 2012 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसमें तमाम बाधाएं आती रहीं। मालपा में कठोर चट्टानों की कटाई के लिए आस्ट्रेलिया से आधुनिक मशीनें मंगाई गईं। उन्हें हेलीकॉप्टर से क्षेत्र में उतारा गया।
एतिहासिक पल की गवाह बनी नैनीसैनी हवाईपट्टी
उद्घाटन समारोह नैनीसैनी हवाईपट्टी पर आयोजित किया गया। यहां बीआरओ के मुख्य अभियंता विमल गोस्वामी, विवेक भूषण, ओसी कर्नल सोमेंद्र बनर्जी, जिलाधिकारी डॉ. वीके जोगदंडे, पुलिस अधीक्षक प्रीति प्रियदर्शीनी मौजूद रहीं।
सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण
चीन सीमा तक बन रही सड़क सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। इसे नेपाल सीमा के समानान्तर बनाया गया है। त्रिकोणीय अंतरराष्ट्रीय सीमा की इस सड़क से क्षेत्र में तैनात भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और एसएसबी को खासी सुविधा मिलेगी। जवानों की सीमा क्षेत्र तक आवागमन आसान होगी और साजो-सामान पहुंचाने में भी मदद मिलेगी। अभी तक यह काम घोड़े- खच्चरों से लिया जाता था। अंतिम सीमा क्षेत्र तक पहुंचने में धारचूला से चार दिन का समय लगता है, लेकिन सड़क बनने से एक दिन में चीन सीमा तक का सफर पूरा हो जाएगा।
अंतिम भारतीय पड़ाव तक आसान हुई आवाजाही
गर्बाधार- लिप्रुलेख मार्ग कैलास मानसरोवर यात्रियों के लिए विशेष लाभकारी साबित होगा। बीआरओ ने गर्बाधार से अंतिम भारतीय पड़ाव नावीढांग तक सड़क तैयार कर कैलास मानसरोवर यात्रियों को भी बड़ी सौगात दी है।
तो मालपा में बाधित नहीं होगी यात्रा
कैलास मानसरोवर यात्रा मालपा क्षेत्र में सर्वाधिक बाधित होती रही है। कठोर चट्टान वाले इस इलाके में अक्सर भूस्खलन होते रहते हैं। तीन वर्ष पूर्व यहां आई भीषण आपदा के कारण यात्रा को बीच में ही रोकना पड़ गया। बीते वर्ष भी भूस्खलन के कारण यात्रा करीब 15 दिनों तक बाधित रही। अब सड़क तैयार होने से यात्रा में आसानी होगी।
2006 में शुरू हुआ था निर्माण
सामरिक महत्व को देखते हुए वर्ष 2006 में गर्बाधार से लिपुलेख तक सड़क निर्माण शुरू हुआ। वर्ष 2012 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसमें तमाम बाधाएं आती रहीं। मालपा में कठोर चट्टानों की कटाई के लिए आस्ट्रेलिया से आधुनिक मशीनें मंगाई गईं। उन्हें हेलीकॉप्टर से क्षेत्र में उतारा गया।