पिथौरागढ़। भारत के अंतिम गांव के लोगों की जिंदगी संघर्ष और चुनौतियों का जीता जागता उदाहरण है। जहां के लोग सड़क और नेटवर्क से आज भी पूरी तरह कटे हैं। सड़क के अभाव में निरंतर पलायन हो रहा है। लेकिन कई ग्रामीण ऐसे भी हैं जो माटी का मोह और गरीबी के कारण अपना गांव छोड़ नहीं पा रहे। आजादी के बाद से आज तक सड़क और नेटवर्क जैसी मूलभूत सुविधाओं से महरूम ग्रामीण इसके लिए सालों से मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकारें और प्रशासन उनका दुख नहीं समझ सकीं। उन्हें यह नहीं समझ आया कि एक गर्भवती या बीमार को सड़क तक लाने के लिए ग्रामीणों को 27 किमी डोली में बैठाकर पैदल चलना पड़ता है। नहीं समझ सके कि बारिश और बर्फबारी के कारण करीब सात माह तक वह घरों में कैद होकर रह जाते हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के नाकिम के ग्रामीणों का संघर्ष से तो पुराना नाता है, लेकिन एक बार फिर उन्होंने इसे अपने हक-हकूक के लिए लड़ने का जरिया बनाया है।
आगामी चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी
सड़क के अभाव में नामिक के ग्रामीणों को आज भी 27 किमी पैदल चलना पड़ता है। वर्ष के सात माह गांव की करीब 500 से अधिक की आबादी के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहते हैं। बरसात में पैदल मार्ग उफनाते नालों से बह जाते हैं। वहीं, शीतकाल में तीन माह मार्ग बर्फ से पूरी तरह से ढक जाते हैं। जिस कारण ग्रामीणों को तहसील मुख्यालय से संपर्क कट जाता है। ग्रामीणों को घरों में ही कैद रहना पड़ता है। गुरुवार को नामिक गांव के ग्रामीणों ने 165 किमी दूर जिला मुख्यालय पहुंचकर अनिश्तिकालीन क्रमिक अनशन शुरू कर दिया है। कहा शीघ्र मांग पूरी नहीं होने पर आगामी 2022 विधानसभा चुनाव बहिष्कार की चेतावनी दी है।
जिला मुख्यालय में धरने पर बैठे ग्रामीण
गुरुवार को मुनस्यारी ब्लॉक के अति दुर्गम ग्राम पंचायत नामिक के ग्रामीण जिला मुख्यालय में टकाना रामलीला मैदान स्थित धरना स्थल पहुंचे। यहां उन्होंने शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए अनिश्चितकालीन अनशन शुरू किया। ग्रामीणों ने बताया कि नामिक गांव आजादी के सात दशक बाद भी सड़क व संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। कहा कि एक जनवरी 2017 से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत होकरा से नामिक तक 17 किमी सड़क निर्माण कार्य शुरू किया गया, मगर वर्ष 2019 तक इस सड़क में महज सात किमी ही सड़क निर्माण कार्य हो सका। जबकि निर्माण कार्य 30 जून 2020 तक पूर्ण किया जाना था। इस बीच समय पर कार्य पूर्ण न होने पर पूर्व ठेकेदार को हटाकर नया टेंडर जारी किया गया, तब से सड़क निर्माण कार्य बंद हो गया है ।
गांव के कई युवा इंडियन आर्मी में
जेष्ठरा बरपटिया संघ की अध्यक्ष सुशीला देवी ने बताया कि सड़क नहीं होने से सबसे ज्यादा खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं को डोली के सहारे 27 किमी पैदल चलकर सड़क तक पहुंचाया जाता है। शासन-प्रशासन को महिलाओं की पीड़ा को समझना चाहिए। चंद्रा देवी ने बताया कि डिजिटल युग में भी संचार सुविधा न होना दुर्भाग्यपूर्ण है, जबकि नामिक गांव के कई युवा सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। संचार सुविधा न होने से स्वजन उनका कोई हाल-चाल नहीं जान पाते हैं। जिस कारण स्वजनों को हमेशा चिंता बनी रहती है। ग्रामीणों की इस समस्या को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। पहले दिन लक्ष्मण सिंह जैम्याल, प्रताप सिंह, दिनेश सिंह कंडारी, प्रकाश सिंह, उप प्रधान चंदर राम, जसमाल सिंह, विनोद सिंह, खुशाल सिंह, रमेश जैम्याल, दिनेश धरने पर बैठे। उनके समर्थन में नामिक गांव की जेष्ठरा बरपटिया संघ की अध्यक्ष सुशीला देवी, चंद्रा देवी, बीना देवी, सरिता देवी धरने पर बैठे।
गांव में निरंतर हो रहा पलायन
पूर्व क्षेत्रपं सदस्य लक्ष्मण सिंह का कहना है कि चुनाव के समय राजनीतिक दलों से जुड़े लोग पैदल चलकर गांव तक पहुंचते हैं। ग्रामीणों को सड़क निर्माण के लिए कई बार कोरे आश्वासन दिए जा चुके हैं। अब ग्रामीण किसी के भी झूठे आश्वासन पर नहीं आने वाले हैं। सड़क नहीं बनने पर ग्रामीणों ने आगामी चुनावों का बहिष्कार करने का मन बना लिया है। लक्ष्मी देवी ने कहा कि गांव में न सड़क और न ही संचार सुविधा। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में गांव से पलायन निरंतर बढ़ता जा रहा है। गरीब परिवारों के लिए गांव में रहना मजबूरी है। सरकार को ग्रामीणों की सुध लेनी चाहिए।