पिथौरागढ़। वनराजि समाज के छह लोगों को कोविड संक्रमित पाए जाने पर आइसोलेट किए जाने से उनके परिवारों के सामने खाने-पीने का संकट भी खड़ा हो गया है। प्रशासन ने संक्रमितों को तो आइसोलेट कर दिया लेकिन संरक्षित जनजाति के परिवारों के लिए राशन का इंतजाम नहीं किया जा सका है। मामला संज्ञान में आने के बाद प्रशासन बुधवार को प्रभावितों के लिए राशन भेजने की तैयारी कर रहा है।
हाल में वनराजि गांव किमखोला में की गई सैंपलिंग में वनराजि परिवार के छह लोग संक्रमित मिले थे। ये सभी अपने घरों के मुखिया भी हैं और इन्हीं पर परिवार की जिम्मेदारी भी है। समाज के महिला व पुरु ष सदस्य रोज मेहनत-मजदूरी कर परिवार का पेट भरते हैं। गांव निवासी इंदिरा देवी रजवारनी ने बताया कि अभी तक तो आपसी मदद से इन प्रभातिवों परिवारों के भोजन की व्यवस्था हो रही थी परंतु अब अन्य परिवारों के समक्ष भी राशन का संकट खड़ा हो गया है।
प्रशासन भी इन परिवारों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। कौशल्या रजवारनी का कहना है कि सरकार पिछली बार मुफ्त राशन दे रही थी। मगर इस बार गांव के चार परिवारों को यह राशन भी नहीं मिला है। ग्रामीणों ने जल्द प्रभावितों परिवारों की सुध लेने की मांग की है। एसडीएम धारचूला एके शुक्ला ने बताया कि बुधवार को राजस्व टीम वनराजि गांव में भेजी जाएगी। कोटे का राशन ग्रामीणों को क्यों नहीं मिला इसकी जांच भी होगी। प्रशासन की ओर से सभी परिवारों के लिए निश्शुल्क राशन भी भेजा जाएगा।
वनराजि प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति
उत्त्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले की सीमांत की डीडीहाट और धारचूला तहसीलों में नौ स्थानों पर वनराजि जिसे स्थानीय लोग वनरावत के नाम से जानते हैं निवास करती है। यह जनजाति प्रदेश की एकमात्र आदिम जनजाति की श्रेणी में आती है। सदियों से इस जनजाति का संबंध जंगलों से रहा और गुफाएं इनके आवास रहे। पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर यह जनजाति मुख्य धारा से न तो खुद जुड़ सकी और न ही व्यवस्था ने इन्हें समाज से जोडऩे के लिए कदम उठाए। आजादी के बाद इन्हें वनराजि शब्द दिया गया। शिक्षा, स्वास्थ्य कुछ भी इस समाज को नहीं मिल सका। बाल मृत्युदर अधिक होने से इस जनजाति को संरक्षित श्रेणी में रखा गया ।