पिथौरागड़। उत्तराखंड के पिथौरागड़ में भूविज्ञानी ने आग्रह किया की 12 गांवो को स्थान परिवर्तन की आवश्यकता है।
भूविज्ञानी ने बताया की पिथौरागड़ के 12 गांव में भूस्खलन का भारी असर पड़ता है जिसकी वजह से उनका स्थान परिवर्तन मानसून की शुरूआत में होने की जरूरत है।
सर्वे में पता लगाया गया की पिथौरागड़ जिले के 12 गांव कई सालों से की चपेट में हैं। इन गांवो के निवासियों को जल्द ही मानसून की शुरूआती दिनों में महफूस जगह में ले जाने की जरूरत है। भूवेज्ञानी और खनिज विभाग के प्रदीप कुमार ने बताया एक भूवेज्ञानिकों की टीम जो की 24 दिस्मबर 2017 से सर्वे कर रही है जिसका परिणाम अब बाहर आया है।
गांव जिन्हे तत्काल ही दूसरी जगह बनने की जरूरत है उनमे से मुनशियारी के सीनार, कुलथम और भडेली, धारचूला के तनकुल, छालमा, चिलासो, हीमखोला , कनार, धारपांगू , सूआ, बुंगबुंग, गरगुवा, स्यारी, जामकु और भारबलेली और बीरींग का गारजिला शामिल हैं।
सर्वे क्षेत्र के 12 और गांवो पर विस्तृत किया गया । भूविज्ञानी का कहना है की सीनार, कुलथम और भडेली में उपखंड की पहचान हो चुकी है बाकी के गांवो में साइटों की पहचान पर काम जारी है।
गारजिला गांव में केवल 12 परिवार बसे हुए हैं जिन्हे जल्द ही दूसरे स्थान पर जाने की आवश्यकता है। भूविज्ञानी कुमार ने बताया गांव के ऊपरी इलाकों में प्राकातिक छोटे पत्थर हैं। यहां के परिवारों पर हर समय भूस्खलन की चपेट में आने का खतरा बना रहता है।
जबतक एक मजबूत दिवार नहीं बनाई जाती तबतक यहां बसे हुए लोगों के लिए बड़े भूस्खलन का खतरा बना ही रहेगा। भूविज्ञानी ने बताया गांव को बचाने के लिए रामगंगा के नीचे स्थिर कटाव की भी जरूरत है । स्थानीय लोगों के मुताबिक पिछले 20 सालों में कई परिवार गांव छोड़कर सुरक्षित इलाकों में बस चुके हैं। गरजिला गांव के स्थानीय निवासी ने बताया गांव में बचे हुए बाकी के 12 परिवार मानसून में भूस्खलन के डर से रात में खुली जगह पर सोते हैं।