गांव को बचाने के लिए आगे आई देवकी देवी और हरुली सहित अन्य महिलाओं का कहना है कि गांव से ही उनकी पहचान है। जिस तरह लोग गांव छोड़ कर जा रहे हैं उसका अंतर नजर आने लगा है। गांव में होने वाले तीज-त्योहारों में संख्या घट रही है। पूर्वजों की थाती को इस तरह त्यागना उचित नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए महिलाओं को ही इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। गांव की अधिकांश महिलाएं पलायन नहीं करने की शपथ ले रही हैं।
मुनस्यारी (पिथौरागढ़) : राज्य बनने और पलायन रोकने के तमाम सरकारी प्रयास विफल हो चुके हैं। पहाड़ से पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिथौरागढ़ जिले से प्रतिमाह गांवों से पलायन हो रहा है। सरकारी प्रयास असफल साबित हो चुके हैं। पलायन को लेकर अब खुद ग्रामीण भी परेशान हैं। चीन सीमा से लगे मुनस्यारी तहसील के चौना गांव की महिलाएं अब गांव से पलायन रोकने को कमर कस चुकी हैं। महिलाएं इसके लिए गांव के परिवारों को शपथ दिला रही हैं।
महिलाओं का कहना है कि पलायन से गांव के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है। प्रकृति ने गांव को बहुत कुछ दिया है। ग्रामीणों ने इसी खेती-बाड़ी से बच्चों को पढ़ा-लिखा कर आगे बढ़ाया है। आज गांव सड़क और बिजली से जुड़ गया है। ऐसे में अब पलायन होना गांव के लिए आसन्न संकट है। यह निर्णय महिलाओं ने गांव में आयोजित सत्यनारायण की कथा में लिया। कथा श्रवण के बाद महिलाओं ने मौजूद लोगों से गांव छोड़ कर अन्यत्र नहीं जाने की शपथ दिलाई।
मुनस्यारी से छह किमी की दूरी पर है चौना गांव
चौना गांव तहसील मुनस्यारी मुख्यालय से लगभग नौ किमी की दूर है। गोरी नदी किनारे भदेली से लेकर लगभग छह हजार फीट की ऊंचाई तक स्थित चौना गांव में एक दशक पूर्व बिजली तो लगभग सवा साल पूर्व सड़क भी पहुंच गई है। गांव में रोजगार के नाम पर अभी केवल कृषि कार्य ही है। रोजगार की तलाश में या फिर नौकरी पाने वाले लोग गांव से पलायन कर रहे हैं।
दस सालों में 40 परिवारों ने छोड़ा गांव
चौना गांव में विगत एक दशक के बीच चालीस परिवार गांव छोड़ चुके हैं। एक दशक पूर्व तक गांव में 120 परिवार रहते थे। अब परिवारों की संख्या 80 हो चुकी है। आर्थिक रूप से थोड़ा सक्षम होने वाले ग्रामीण भी मुनस्यारी, पिथौरागढ़ या फिर हल्द्वानी में बस रहे हैं। ऐसे परिवारों को पलायन से रोकने के लिए गांव की महिलाएं प्रयास कर रही हैं।
क्या कहती हैं महिलाएं
गांव को बचाने के लिए आगे आई देवकी देवी और हरुली सहित अन्य महिलाओं का कहना है कि गांव से ही उनकी पहचान है। जिस तरह लोग गांव छोड़ कर जा रहे हैं उसका अंतर नजर आने लगा है। गांव में होने वाले तीज-त्योहारों में संख्या घट रही है। पूर्वजों की थाती को इस तरह त्यागना उचित नहीं है। इसे ध्यान में रखते हुए महिलाओं को ही इसके लिए प्रेरित किया जा रहा है। गांव की अधिकांश महिलाएं पलायन नहीं करने की शपथ ले रही हैं।
युवा भी दे रहे हैं सहयोग
आज के युग की चकाचौंध से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले युवा भी महिलाओं की इस पहल पर साथ देने लगे हैं। गांव के युवा पुष्कर चिराल, नवीन ज्येष्ठा, धरम सिंह चिराल, भगवत फस्र्वाण और प्रेम सिंह का कहना है कि बाहर जाकर छोटी-मोटी नौकरी के बजाय गांव में ही व्यावसायिक फसलों और फलों का उत्पादन कर सुख से रह सकते हैं। गांव से पलायन रोकने के लिए वह साथ देंगे।