उत्तराखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमेटी कार्यालय में आयोजित एक संयुक्त पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल एवं विधायक मनोज रावत ने कहा कि उत्तराखण्ड में आजकल बच्चा – बच्चा भू – कानून की बात कर रहा है। उन्हें चिंता है कि , उनके पूर्वजों की पीढ़ियों से खून-पसीने की मेहनत से अर्जित भूमि को औने – पौन दामों में खरीद कर उन्हें उनकी ही जमीन पर नौकर बनाने का शड़यंत्र उत्तराखण्ड में वर्तमान भाजपा सरकार ने किया है। कांग्रेस पार्टी ने पूर्व में मुख्यमंत्री पं. नारायण दत्त तिवारी से लेकर हरीष रावत जी के मुख्यमंत्रित्व काल में हर स्तर पर उत्तराखण्ड की जमीन को बचाने और उसके अधिकतम सदुपयोग के लिए कानूनी उपाय किए थे और आगे भी इसके लिए संकल्पित है।
भू- कानून एक बहुत ही विस्तृत विषय है राज्य के युवाओं में आजकल 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश) जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा – 143 और धारा – 154 में परिवर्तन के बाद राज्य के पर्वतीय जिलों में मची जमीन की लूट और सरकार द्वारा कुछ संस्थाओं को राज्य की बेषकीमती भूमि लुटाने की आशंका को लेकर बड़ा आक्रोश है । स्थानीय निवासियों और युवाओं के उस आक्रोश की अभिव्यक्ति विभिन्न माध्यमों से जनता के सामने आ रही है इसलिए कांग्रेस पार्टी का कर्तव्य है कि इस विषय पर अपने विचार प्रेस के माध्यम से राज्य की जनता के सामने रखे।
6 दिसंबर को विधानसभा में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश) जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा – 143 और धारा – 154 में परिवर्तन करने संबधी बिल पेश करते समय राज्य सरकार ने इसे उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में बहुत ही महत्वाकांक्षी औद्योगिक क्रांति लाने वाला बिल बताया था। बिल लाने का कारण और उद्देष्य में सरकार ने बताया था कि, ‘‘उत्तराखण्ड राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने एंव राज्य के विकास हेतु औद्योगिक प्रयोजनों ( उद्योग , पर्यटन , चिकित्सा , स्वास्थ्य एवं शैक्षणिक प्रयोजन) के लिए भूमि क्रय की दशा में 12. 5 एकड़ की भूमि क्रय की सीमा के प्रावधान एंव किसी कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि घोशित किए जाने सम्बन्धी प्रावधानों में शिथिलता लाने के उद्देश्य से यह बिल लाया गया है।
भाजपा इस बिल में धारा – 154 की उपधारा- 2 के संशोधन में भाजपा सरकार ने – ‘‘ तत्समय प्रवृत्त भौमिक अधिकार से सम्बन्धित किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य सरकार अपने सामान्य या विषेश आदेश द्वारा यदि उसकी यह सम्मति है कि ऐसा अन्तरण औद्योगिक प्रयोजनों के लिए किया गया है या एक पंजीकृत सहकारी समिति या दानोत्तर प्रयोजनों के लिए स्थापित संस्था के पक्ष में किया गया है जिसके पास उसकी आवष्यकताओं के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है अथवा यह कि अन्तरण जन- साधारण के हित में किया गया है तो उपधारा- 1 में स्वीकृत सीमा से अधिक अन्तरण करने का अधिकार प्रदान कर सकेगी।
धारा- 154 में इस परिवर्तन के बाद राज्य सरकार न केवल औद्योगिक प्रयोजन के लिए बल्कि किसी सहकारी समिति, किसी धार्मिक या अन्य संस्था को भी राज्य के पर्वतीय जिलों में कितनी भी जमीन खरीदने की अनुमति दे सकती है इसकी अगली पंक्ति- अन्तरण जन-साधारण के हित में किया गया है तो राज्य सरकार को किसी भी कार्य को ‘‘जन साधारण के हित में किया कार्य’’ बता कर कितनी भी पर्वतीय क्षेत्र की भूमि किसी को खरीदने की अनुमति दे सकती है।
याने 6 दिसंबर 2018 को उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार ने पर्वतीय जिलों और मैदानी जिलों के पर्वतीय क्षेत्रों की भूमि को न केवल औद्योगिक प्रयोजन हेतु बल्कि किसी भी संस्था, सहकारी समिति को या जन साधारण के हित में किसी भी को बेचने या निलाम करने का षड़यंन्त्र कर दिया था। 4 जून 2019 को उत्तराखण्ड की भाजपा की सरकार ने बहुमत के मद में मदहोश होकर मंत्रिमंण्डल की बैठक में एक निर्णय लेकर उत्तराखण्ड के मैदानी जिलों – उधमसिंहनगर, हरिद्वार और देहरादून में भी हदबंदी (सीलिंग) की 12.5 एकड़ की सीमा समाप्त कर दी।
याने आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों ने गरीबों की भूमि की रक्षा के लिए उत्तर प्रदेष जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम में जिसे बाद में उत्तराखण्ड द्वारा भी स्वीकारा गया की थी वो एक साल के भीतर खत्म कर उत्तराखण्ड के पर्वतीय और मैदानी दोनों ही भागों में जमीन की नीलामी वाली हालात पैदा कर दी है।
मुख्यमंत्री ने कल ही बयान दिया है कि, कड़े भू-कानून के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बनेगी। मुख्यमंत्री को प्रदेश की जनता को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि, 6 अक्टूबर 2018 को उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश) जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा – 143 और धारा – 154 में परिवर्तन करने संबधी अध्यादेश लाने और दिनांक 6 दिसंबर 2018 को उसे बिल के रुप में राज्य की विधानसभा में पास कराने के बाद राज्य के पर्वतीय जिलों या मैदानी जिलो के पर्वतीय भू- भाग की कितनी भूमि औद्योगिक प्रयोजनों ( उद्योग, पर्यटन, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं षैक्षणिक प्रयोजन) के लिए किसी भी व्यक्ति , कंपनी या समूह ने खरीदी है। उत्तराखण्ड में भाजपा की सरकार में यदि थोड़ी भी शर्म बची है तो वह श्वेत पत्र जारी कर बताए कि इस बिल के कानून बनने और 4 जून के मंत्रिमंण्डल के फैसल के बाद राज्य के पर्वतीय और मैदानी दोनों क्षेत्रों की कितनी भूमि औद्योगिक प्रयोजनों के लिए बिकी और कितना औद्योगिक निवेष इस बिल को पास के बाद राज्य में आया।
कांग्रेस पार्टी राज्य भर की भू-व्यवस्था को एकरुपता में लाने की पक्षधर रही है। कांग्रेस का मानना है कि अभी राज्य में जमीन से संबधित दर्जन भर कानून हैं। हमारे पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश ने उन सभी कानूनों का एकीकरण या विलोपन कर ‘‘ उत्तर प्रदेश भू-राजस्व संहिता – 2006 का रुप दे दिया है। कांग्रेस का मानना है उत्तराखण्ड में भी अब एकीकृत भू-कानून की आवष्यकता है और उस कानून में ऐसे कड़ी धाराओं को सम्मलित करने की आवष्यकता है जो कि पर्वतीय और मैदानी दोनों क्षेत्रों की कृशि भूमि और अन्य समुदाय की भूमि को बाहरी खरीददारों और मुफ्तखोर कंपनियों से बचाए। कांग्रेस इसके अलावा भू-बंदोबस्त कराने और पर्वतीय गांवों में भी चकबंदी कराने की पक्षधर है। पूर्व में कांग्रेस की हरीश रावत जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने पर्वतीय क्षेत्र में चकबंदी कराने हेतु विधानसभा में कानून बनाया था और पर्वतीय चंकबदी के लिए अलग विभाग खोला था लेकिन भाजपा की सरकार इन साढे़ चार सालों में एक भी गांव की चकबंदी नहीं कर पायी साथ ही पर्वतीय चकबंदी के लिए खोला गया विभाग भी बंद कर दिया।
एकीकृत भू-कानून या राजस्व संहिता, भू-बंदोबस्त , चकबंदी तथा मनमोहन सिंह सरकार द्वारा संसद में पास किए गए अनूसूचित जनजाति और फोरेस्ट डवैलर एक्ट (वनाधिकार) के लाभों से उत्तराखण्ड के निवासियों को वंचित करने संबधी अन्य विषयों पर भविष्य में पृथक से प्रेस वार्ता का आयोजन किया जाएगा।