पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के आम दावत, रायता पार्टी, नीबू जायका जैसे उनके सामाजिक कार्यक्रमों की चर्चाओं से भाजपा नेताओं में बौखलाहट क्यों होगी भला? भाजपा के लिए तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का एकला चलो का राग हमेशा मुफीद रहा। जरा अतीत की घटनाओं को याद करिए, मुख्यमंत्री रहते उनके एकांगी राग से ही तो आधी कांग्रेस पार्टी और उसके बड़े-बड़े नेता बाहर हो गए, जिसका भाजपा ने भरपूर फायदा उठाया।
देहरादून : पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव हरीश रावत राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। बीते दो रोज पहले उनके अपने प्रदेश अध्यक्ष ने उनकी अपनी ढपली व राग पर तंज कसा था और कहा था अगर ‘मैं कल पार्टी अध्यक्ष न रहा तो अलग चौपाटी थोड़े लगाऊंगा।’ मतलब यह कि भाई अलग खिचडी मत पकाओ पार्टी के साथ आओ।
लेकिन चतुर हरदा ने इस बात को भाजपा की ओर मोड़ जो कहा वह भी दिलचस्प है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और उनके कुछ शीर्ष नेताओं को निशाने पर लिया और कहा कि उनके सामाजिक कार्यक्रमों की चर्चाओं से भाजपा नेता बौखलाए हुए हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि वानप्रस्थ की ओर बढ़ते व्यक्ति को ललकारोगे तो वह फिर धनुष उठा सकते हैं।
अब उन्होंने यह बात भाजपा नेताओं के लिए कही याकि ”कहना चेली को सुनाना बहू को” की तर्ज पर अपने नेताओं को जवाब दिया! यदि उन्होंने भाजपा के नेताओं को कहा तो बात गले नहीं उतर रही। पक्ष-विपक्ष में तो नौक झोंक चलती रहती है, पर इस शिकायती लहजे में तो अपनों से ही कहा जाता है। और फिर लाख टके का सवाल कि धनुष-वाण उठाओ या वानप्रस्थी हो जाओ इससे भाजपा नेताओं का क्या बिगड़ने वाला?
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के आम दावत, रायता पार्टी, नीबू जायका जैसे उनके सामाजिक कार्यक्रमों की चर्चाओं से भाजपा नेताओं में बौखलाहट क्यों होगी भला? भाजपा के लिए तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का एकला चलो का राग हमेशा मुफीद रहा। जरा अतीत की घटनाओं को याद करिए, मुख्यमंत्री रहते उनके एकांगी राग से ही तो आधी कांग्रेस पार्टी और उसके बड़े-बड़े नेता बाहर हो गए, जिसका भाजपा ने भरपूर फायदा उठाया।
भाजपा तो यही चाहेगी कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत राजनीति में उसी सिध्दत के साथ बने रहें और अपनी बांसुरी की तान बीच-बीच में ऐसे ही छोड़ते रहे कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष को ऐसे तल्खी भरे बयान देने पड़ें।
वैसे उन्होंने आगे जो कहा उससे अब कोई संदेह नहीं रहा कि उनका धनुष-वाण अपनों पर निशाना साध रहा है। उन्होंने कहा कि ‘उन्हें यह भी अजीब लगता है, जब उनकी ओर से दी गई आम, जामुन, ककड़ी-रायता, काफल, कचरी, नींबू, भुट्टा, लीची, आड़ू, चुआरू, मशरूम पार्टी से लोगों को परेशानी होती है। होली, दीपावाली मिलन से लेकर हरेला, घी-संक्रांद, चैतोले का त्योहार उत्तराखंडियत के लक्ष्य को आगे बढ़ाते हैं। इन पार्टियों में उन्होंने सबको बुलाया, फिर भी इनमें राजनीति दिखाई दे रही है तो उन्होंने इसप्रकार की पार्टियां देना बंद कर दिया है।’