रैणी गांव पर भूस्खलन का बना खतरा बढ़ा,कई मकान जद में आने के बाद 13 परिवार शिफ्ट

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पर्यावरण चेतना से जुड़े चिपको आंदोलन की धरती रैणी गांव खतरे में है। चार दिन की बारिश में यहां के 13 परिवारों को स्कूल में शरण लेनी पड़ी है। गांव की जमीन दरक रही है। मकान भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं। ग्रामीण भय के माहौल में जीने को मजबूर हैं।  नीती-मलारी हाईवे के एक हिस्से के पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद नई सड़क बनाने के लिए चार दिन पहले ही यहां गौरा देवी के स्मारक को विस्थापित करना पड़ा था। अब गांव के लोगों को विस्थापित करने की बारी आ गई है। नदी से हो रहे कटाव और धंस रही जमीन की वजह से 13 मकान पूरी तरह खतरे की जद में आ गए। इन मकानों में रह रहे परिवारों को रैणी वल्ली के स्कूल में अस्थाई तौर पर ठहराया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें स्कूल में तो ठहरा दिया है, लेकिन उनके लिए खाने और बिस्तर तक का ठीक से इंतजाम नहीं किया गया है। गांव के बाकी लोग भी भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि पता नहीं अब गांव का क्या होगा। इस बरसात में उन्हें भी कहीं और जाना पड़ेगा या फिर आपदा की भेंट चढ़ जाएंगे। रैणी के सूरज सिंह राणा, बचन सिंह कहते हैं सरकार और प्रशासन हमें सिर्फ आश्वासन देता है, वह वादे करता है। हमें स्थाई समाधान चाहिए, लेकिन इस समस्या का हल कोई ढूंढ नहीं रहा है। एक-एक कर हम अपना घर छोड़कर बेघर हो रहे हैं।

रैणी के ग्राम प्रधान भवान सिंह कहते हैं तहसील प्रशासन ने आपदा प्रभावित परिवारों को रैणी वल्ली में ठहरा दिया है। उन्हें राहत के नाम पर केवल कुछ गद्दे दिए हैं। न ओढ़ने की व्यवस्था और न खाने का ही पर्याप्त इंतजाम किया गया है। इस आपदा में लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।   रैणी गांव की सोनी देवी ठेठ गढ़वाली भाषा में अपना दर्द बताती हैं,  कहती हैं सरकार हमारी क्वे सुध बुद नि ल्योणी। हमुन कख जाण। यानी सरकार हमारी कोई सुध नहीं ले रहे हैं, हम जाएं तो कहां जाएं। हम मुश्किल वक्त में हैं, कोई कुछ नहीं कर रहा है।   इस गांव की विद्या देवी कहती हैं गांव पर आफत आ गई है। हर तरफ से गांव की जमीन खिसक रही है। सरकार से विस्थापन की मांग की, कई बार गुहार भी लगाई, पर कोई सुन ही नहीं रहा है। हम अपने पैतृक घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। पूरे गांव पर ही संकट है। बस दिन गिन रहे हैं।

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