स्वामी विवेकानंद की विरासत पर चला हथौड़ा, अब डाकबंगले की जगह बनेगा ध्यान केंद्र

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सात समंदर पार वर्ष 1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन से आध्यात्मिक पताका फहराने वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद का दुनियाभर में डंका है। स्वामी विवेकानंद का इस जिले से भी ताल्लुक रहा है, लेकिन उनकी विरासत से जुड़े स्थानों और भवनों का कोई सुधलेवा नहीं है। अब तो स्वामी विवेकानंद की स्मृतियों को सहेजने वाले चंपावत में बने दियूरी के डाकबंगले पर भी हथौड़ा चल गया है। इस जीर्णशीर्ण डाकबंगले का उपयोग दो दशक से यदाकदा ही मजदूरों के रहने के लिए होता था, लेकिन अब वहां ध्यान केंद्र बनेगा।

स्वामी विवेकानंद की स्मृति से जुड़ा डाकबंगला यहां से 25 किमी दूर दियूरी में है, जहां इस बंगले में स्वामी विवेकानंद 19 जनवरी 1901 को रात में रुके थे। स्वामी विवेकानंद से जुड़े साहित्य में इस बात का उल्लेख है कि चंपावत से स्वामी विवेकानंद को डोली से दियूरी ले जाया गया था।

डाक बंगले में स्वामी विवेकानंद और उनके साथियों (गुरु भाई और श्रीरामकृष्ण देव के दूसरे शिष्य स्वामी सदानंद और स्वामी विरजानंद के अलावा अल्मोड़ा के लाला गोविंद लाल शाह) ने घी और भात खाया। पूर्व प्रधान पूरन सिंह, दीपक नेगी आदि ग्रामीण कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद के यहां रात बिताने की जानकारी उनके बड़े-बुजुर्ग भी बताते थे। दो कक्ष वाले इस जीर्णशीर्ण बंगले को अब ध्वस्त कर दिया गया है। अब इस जगह का उपयोग ध्यान केंद्र बनाने के लिए किया जाएगा।

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