देहरादून। संवाददाता। प्रथम चरण में चुनाव होने के कारण राजनीतिक दलों के पास प्रत्याशियों की सूची जारी करने के बहुत अधिक समय नहीं है। राज्य के दोनो दल ही भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रत्याशी चयन का काम आसान नहीं है। खास कर सत्तारूढ़ भाजपा की मुश्किलें ज्यादा है। इस काम को और अधिक पेचीदा बनाने में वह पूर्व कांग्रेसी नेता जो 2016 में भाजपा में आये थे उनकी दावेदारी भी अहम भूमिका निभा रही है। पांच सीटों के लिए अब तक 45 से 50 दावेदारों के नाम सामने आ चुके है। कम समय में इस जटिल काम को निपटाने में भाजपा क्या कौशल दिखाती है और टिकट तय होने के बाद अंसतोष का स्तर क्या रहता है यह अहम सवाल भाजपा के लिए यक्ष प्रश्न बने हुए है।
भले ही भाजपा के लोकसभा चुनाव प्रभारी थावर चंद गहलौत सिर्पफ जिताऊ प्रत्याशियों को ही टिकट देने की बात कह रहे हो और प्रदेश अध्यक्ष सभी सिटिंग सांसदों को जिताऊ प्रत्याशी होने के बात कह रहे हों लेकिन प्रत्याशी चयन का काम उतना आसान नहीं है इसे यह नेता बखूबी जानते है। यही कारण है कि अंत में सभी के द्वारा गेंद संसदीय समिति के पाले में डाल कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि अंतिम फैसला वही करेगी। अब तक कमोबेश किसी न किसी तर्क में सभी पांच सिटिंग सांसदो का टिकट काटे जाने की बात कभी न कभी चर्चाओं में रही है। जिसका भी टिकट कटने की बात हुई तभी वह सांसद मुखरता से सामने आकर अपना पक्ष रखता दिखा है।
डा. निशंक, राज लक्ष्मी शाह, अजय टम्टा सहित सभी पूरे दम खम के साथ चुनाव लड़ने को तत्पर दिख रहे है। हां पौड़ी सांसद बीसी खण्डूरी और नैनीताल सांसद भगत दा जरूर चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे है लेकिन इंकार का कारण उनकी नाराजगी के रूप में ही सामने आया है। इन सभी सांसदों को लग रहा है कि भाजपा एक बार फिर आसानी से जीत कर केन्द्रीय सत्ता में आ रही है इसलिए कोई भी अपनी दावेदारी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।
उधर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, यशपाल आर्य, कुंवर प्रणव चैम्पियन से लेकर सुबोध तक सभी अपने लिए या अपनों के लिए टिकट मांग रहे है। कांग्रेस से आये इन तमाम नेताओं की दावेदारी को कैसे खारिज किया जाये? और अगर किया तो इसके क्या परिणाम होगें? क्या संदेश जायेगा? यह सवाल भी अहम है। एक तीसरी बात है पार्टी के ही मुन्ना चौहान, मदन कौशिक, रेखा आर्य, चंदन रामदास, अजय भट्ट जैसे नेताओं को दरकिनार करना भी आसान काम नहीं है। साथ ही जाति और क्षेत्र के समीकरणों को साधना भी एक चुनौती है। यही कारण है कि टिकट चाहे जिसे भी मिले भाजपा में प्रत्याशियों की सूची जारी होते ही बगावत व भीतरघात की चिंगारी नहीं भड़केगी इसकी संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। टिकट के लेकर जिस तरह का घमासान भाजपा में देखा जा रहा है वह अच्छे संकेत नहीं है।