गुजरात चुनाव, एक विश्लेषण: मोदी की लोकप्रियता की मजबूत दीवार के आगे सब बौने-संजय मिश्र

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वडोदरा शहर के अलकापुरी मार्केट के कारोबारी हेमंत शाह हों या गुजराती नाश्ते-मिठाई की एक आधुनिक दुकान के मालिक युवा हरिकेश पटेल इनकी नजर में जीएसटी और नोटबंदी से मुश्किलें हुई हैं और कारोबार-मुनाफे पर असर पड़ा है। मगर इस थोड़ी दिक्कत की वजह से हम अपने आदमी को कमजोर कर दें, यह तो ठीक नहीं… आखिर हमारे सूबे का नेता देश का प्रधानमंत्री है।

वडोदरा : पाटीदारों के अनामत आंदोलन से हीरो बने हार्दिक पटेल भले पूरे सूबे में पटेलों की भाजपा के खिलाफ गोलबंदी का दावा कर रहे हों, मगर सियासत की जमीन पर उत्तर गुजरात से बाहर निकलते ही उनका दावा कमजोर दिखायी दे रहा है। वडोदारा पहुंचते-पहुंचते कांग्रेस के हार्दिक दांव की तेजी न केवल धीमी पड़ती दिख रही है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता की मजबूत दीवार मध्य गुजरात के इस अहम इलाके में भाजपा का सियासी कवच बन रही है।

हार्दिक के आरक्षण आंदोलन की चुंबक भी वडोदरा जैसे शहर ही नहीं मध्य गुजरात के ग्रामीण इलाके में पाटीदारों को भाजपा के खिलाफ पूरी तरह गोलबंद नहीं कर पायी है। पाटीदारों की गोलबंदी के दावों से उलट मध्य गुजरात में उनकी एकता सियासी खेमों में साफ बंटी नजर आ रही है।

यहां भाजपा का किला है बड़ा मजबूत

उत्तर गुजरात के मुकाबले मध्य गुजरात में सियासी कैनवास की अलग तस्वीर के साथ सूबे के शहरी और ग्रामीण इलाकों में राजनीतिक विभाजन का अंतर भी साफ दिखाई दे रहा है। बडे शहरों में भाजपा का अपना किला जहां अब भी बेहद मजबूत दिख रहा है, वहीं ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस मजबूती से मुकाबले में हैं।

शहरी और ग्रामीण इलाकों के चुनावी मिजाज में बेशक फर्क साफ है, मगर मोदी फैक्टर का गांवों में होना भाजपा के लिए राहत की बात है। मोदी के निडर नेता की छाप लोगों पर इतनी गहरी है कि वे गुजरात की भाजपा सरकार से अपनी नाखुशी की अनदेखी को भी तैयार हैं।

यहां हार्दिक फैक्टर हो जाता है खारिज 

मध्य गुजरात के आणंद, खेड़ा और वडोदरा में पटेल समुदाय के ही युवा से लेकर बुर्जुग से सियासी चर्चा पर रुबरू होने के दौरान हार्दिक के चुंबक का असर इधर कमजोर पड़ने का संकेत साफ मिल जाता है। वडोदरा जिले के सांगूरा गांव के निकट हाइवे पर चाय की दुकान पर बैठे लोगों की टोली में शामिल मंगेश पटेल हार्दिक फैक्टर का यहां असर खारिज करते हुए कहते हैं कि यहां वोट तो मोदी फैक्टर देखकर होगा। यहीं मौजूद ओबीसी में आने वाले क्षत्रीय समुदाय के मोहनभाई जावड़ा कहते हैं कि किसानों को दिक्क‍त तो है और फसल की कीमत नहीं मिलने से भारी नुकसान भी हो रहा मगर वोट तो मोदी को देखकर ही गिरेगा।

वडोदरा जिले की वागोडिया विधानसभा क्षेत्र के गांव बाजवा के वीआर वाघेला हों या पड़ोसी जिला महिषासागर के कंजरी गांव के एकांउटेंट अशोक पाठक दोनों मानते हैं कि कांग्रेस ने इस बार चुनौती तो दी है, मगर मोदी की वजह से भाजपा उनके इलाके में बच जाएगी। कंजरी गांव के ही किसान बगूभाई पटेल खेती की अपनी मुसीबत बताने के बाद भी कहते हैं कि मोदी से कोई शिकायत नहीं।

दिक्कत है, लेकिन वोट तो…

वडोदरा शहर के अलकापुरी मार्केट के कारोबारी हेमंत शाह हों या गुजराती नाश्ते-मिठाई की एक आधुनिक दुकान के मालिक युवा हरिकेश पटेल इनकी नजर में जीएसटी और नोटबंदी से मुश्किलें हुई हैं और कारोबार-मुनाफे पर असर पड़ा है। मगर इस थोड़ी दिक्कत की वजह से हम अपने आदमी को कमजोर कर दें, यह तो ठीक नहीं… आखिर हमारे सूबे का नेता देश का प्रधानमंत्री है।

हमें किसी की भीख या आरक्षण नहीं चाहिए

हरिकेश तो हार्दिक को राजनीतिक रूप से तवज्जो दिए जाने को ही अनुचित मानते हुए कहते हैं कि वे खुद इसी समुदाय से हैं और उनके जैसे काफी लोग हार्दिक की राजनीतिक धारा के खिलाफ हैं। इस राय से सहमति जताते हुए आणंद के जीके पटेल कहते हैं कि इस इलाके के पाटीदारों के हर दूसरे परिवार का व्यक्ति विदेश में है और अच्छा कारोबार या नौकरी है। इसीलिए हमें किसी की भीख या आरक्षण की जरूरत नहीं है। वडोदरा जिले में भाजपा का बीते कई चुनावों से वर्चस्व रहा है और इसीलिए तमाम सामाजिक समीकरणों को साधते हुए चुनाव में उतरने के बाद भी कांग्रेस के लिए यहां बड़ा उलटफेर करना मुश्किल नजर आ रहा है।

वडोदरा है कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर

वडोदरा जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें श्याउजीगंज तथा मांजिलपुर दो ही ऐसी सीटें दिख रही हैं, जहां कांग्रेस बराबर की टक्कर देती दिख रही है। अहमदाबाद और सूरत के बाद गुजरात में सबसे अधिक शहरी सीट वाले वडोदारा में भाजपा के दुर्ग को भेदने की कांग्रेस की चुनौती कितनी बड़ी है इसका अंदाजा पिछले विधानसभा चुनाव के तथ्यों से लगाया जा सकता है। 2012 के चुनाव में भाजपा ने न केवल सभी 10 सीटें जीती थीं, बल्कि इन सभी सीटों पर उसकी जीत का अंतर 30 हजार से लेकर 50 हजार वोट का रहा था।

लोकसभा चुनाव में मोदी 5 लाख से ज्यादा मतों से जीते

लंबे अर्से से भाजपा का मजबूत गढ़ रहने की वजह से ही 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने वडोदरा से चुनाव लड़ा था और पांच लाख से अधिक मतों से रिकॉर्ड जीत हासिल की थी। वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करने के लिए मोदी ने जीत के बाद यहां की लोकसभा सदस्यकता छोड़ दी थी। पिछले चुनावों की इस तस्वीर से साफ है कि कांग्रेस के लिए भाजपा को उसके बड़े शहरी दुर्ग में मात देना आसान नहीं दिख रहा।

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