देहरादून। संवाददाता। गर्मी शुरू होने के साथ ही उत्तराखण्ड के जंगल धधकने लगे है। अब तक एक हजार हेक्टेयर से अधिक जगंल जल चुका है कितना नुकसान हुआ कितने वन्य जीव इस आग में जलकर मर गये इसका कोई पुख्ता ब्यौरा नहीं है। वन विभाग को सिर्फ आग की घटनाओं की गिनती पता है तथा कितने वनकर्मी आग बुझाने के प्रयास में झुलसे बस इसका ब्यौरा पता है। बाकी सब जो बताया जा रहा है वह काल्पनिक है।
सवाल यह है कि उत्तराखण्ड की लाखों करोड़ की वन सम्पदा हर साल जो जलकर खाक हो जाती है और जिस आग से हजारों वन्य जीवों का जीवन संकट में फंस जाता है वहंा जगलों में आग लगती है या लगाई जाती है? यह एक बड़ा सवाल है। जगंल की आग की तरह खबर फैलने की कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी। भले ही कुछ लोग बरसात में हरे चारे की इन जंगलों से सुनिश्चितता के लिए जंगलों में आग लगाते हो लेकिन उनका यह कृत्य कितना बड़ा नुकसान का सौदा साबित होता है इसका उन्हे अंदाजा नहीं होता है। भले ही वह जंगल के कुछ हिस्से को जलाना चाहते हो लेकिन उनके द्वारा लगाई गयी आगक कहंा तक फैलेगी और कितना नुकसान होगा इसका उन्हे भी अनुमान नहीं होता है।
आज वन रक्षकों द्वारा जंगल में गश्त के दौरान बागेश्वर क्षेत्र में वनों को आग लगाते हुए एक युवक को गिरफ्तार किया गया। वन अधिनियमों के तहत अब महकमा उसके खिलाफ कार्यवाही करने में जुटा है। उधर वन मंत्री उत्तराखण्ड के जलते हुए जंगलों पर सफाई दे रहे है कि चुनाव आचार संहिता के कारण वनाग्नि को रोकने के इस साल सार्थक उपाय नहंीं किये जा सके है। डा. हरक सिंह का कहना है कि क्षेत्रवासियों में वनाग्नि रोकने के लिए जागरूकता अभियान भी नहीं चलाये गये। वहीं वनाग्नि को रोकने की मानिटरिंग भी नहीं हो पा रही है। सवाल यह है कि जिन क्षेत्रवासियों पर वन महकमा आग रोकने की जिम्मेवारी डालकर अपना पल्लू झाड़ लेता है अगर वही वनों को जलायेगे तो फिर जंगल की इस आग को भला कैसे रोका जा सकता है। अब वन विभाग के पास अब इंद्रदेव का ही सहारा है। कि वह जल बरसाये तो यह वनाग्नि शांत हो।