रिवर बेसिन मैनेजमेंट गोष्ठी मैं बोले मुख्यमंत्री; रिवर बेसिन मैनेजमेंट का उत्तराखण्ड के लिये विशेष महत्व है।

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नई दिल्ली (संवाददाता) : मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विवेकानन्द इण्टरनेशनल फाउण्डेशन द्वारा रिवरबेसिन मैनेजमेंट विषय पर आयोजित संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि रिवर बेसिन मैनेजमेंट का उत्तराखण्ड के लिये विशेष महत्व है। उत्तराखण्ड से निकलने वाली गंगा देश का सबसे बडा रिवर बेसिन है।

सीएम श्री रावत ने कहा, गंगा गंगोत्री से गंगा सागर तक 05 राज्यों से होते हुए यह करीब 2525 कि.मी. की यात्रा तय करती है, यही नही देश की सिंचित भूमि का 40 प्रतिशत तथा देश की बडी आबादी को खाद्य सुरक्षा इसी बेसिन से मिलती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जल के बिना जीवन की कल्पना नही की जा सकती है। बावजूद इसके जल संचय के लिय जो अभियान चलाया जाना चाहिए वह दिखाई नही देता। आज हमारी कई नदियां विलुप्त हो चुकी है। देश में जो बडे 22 रिवर बेसिन है, अब उनमें पानी की कमी आयी है। यदि इस दिशा में कदम नही उठाये गये तो हमारी बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण उद्योग और कृषि के क्षेत्र इससे सीधे प्रभावित होंगे।

उन्होंने कहा बढी आबादी के चलते प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में आ रही कमी भी चिंता का विषय है। वर्ष 1991 में जहां जल की उपलब्धता 2209 क्यूसेक मीटर थी, वह घटकर 2011 में 1545 क्यूसेक मीटर हो गयी है। इसी प्रकार भारत में प्रति व्यक्ति पानी स्टोरेज 209 क्यूसेक मीटर है, जबकि रूस में यह 6103 व चीन में 1111 क्यूसेक मीटर है। इसका मतलब साफ है कि भारत एक साल भी सूखे का सामाना नही कर सकता है।

सीएम ने कहा प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ग्रामीण कृषि सिंचाई योजना के जरिये हर खेत को पानी देने का लक्ष्य रखा है। जिस पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। इससे हर खेत को पानी देने में हम जरूर कामयाब होंगे। उन्होंने कहा कि भारत में प्रतिदिन 38 हजार 3 सौ 54 मिलियन लीटर ेमूंहम हमदमतंजम होता हैं। मगर जो हमारी (ज्तमंजउमदज बंचंबपजल) या शोधन क्षमता है वह केवल 11 हजार 7 सौ 86 मिलियन लीटर चमत कंल है।

मुख्यमंत्री ने कहा हमें इस स्थिति को बदलना होगा। हमारे विशेषज्ञों को इस विषय पर भी चिंतन करना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है। हमने बिना सोचे समझे भूूजल का दोहन किया है। जबकि तमबींतहम के बारे में जितना काम होना चाहिए उतना हुआ नहीं। इससे लोगों और जानवरों के स्वास्थ में विपरित असर पड़ रहा है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड में राज्य सरकार द्वारा ’’जल संचय जीवन संचय’’ की शुरूआत की गई है। इसके तहत टाॅयलेट के सिस्टर्न में एक लीटर पानी की बोतल में रेत या मिट्टी रखकर सालाना करीब 14 हजार 748 लाख लीटर पानी बचा पायेंगे। यह कार्यक्रम जीरो बजट का है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश के हर जिले में जन जागरूकता अभियान चलाकर 3837 चालखाल, जलकुण्ड, फार्म पौण्ड का निर्माण, 84000 कन्टूर टेंªच का निर्माण, 2186 चैक डैम का निर्माण तथा 381 रेनवाटर हारवेस्टिंग स्ट्रक्चर का निर्माण करके 34631.99 लाख ली0 जल संचय क्षमता में वृद्वि का लक्ष्य रखा है और हम इस लक्ष्य को पूरा करेंगे। हमनें इसी माह दो नदियों रिस्पना और कोसी नदी को पुनर्जीवीकरण करने का बीड़ उठाया है एक प्रदेश की राजधानी देहरादून की लाइफलाइन है तो कोसी नदी कुमांऊ की लाइफ लाइन है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में जल विद्युत परियोजनओं की अपार संभावना है हमारी जलविद्युत क्षमता 25 हजार मेगावाट है मगर हम केवल 4000 मेगावाट का ही दोहन कर पा रहे है। कुछ पर्यायवरण से जुडे पहलु हैं जिनपर काम किया जा रहा है। उन्होंनेे विश्वास व्यक्त किया कि इस क्षमता का दोहन राज्य के विकास के लिए आने वाले दिनों में कर पायेंगें।

उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द का उत्तराखण्ड से विशेष लगाव रहा है, वे 04 बार उत्तराखण्ड आये। इस प्रकार उत्तराखण्ड का स्वामी विवेकानंद एवं गंगा से गहरा नाता रहा है, जो हमारे लिये आस्था और आजीविका से जुडा विषय है। इस अवसर पर सचिव, ऊर्जा श्रीमती राधिका झा उपस्थित थी।

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