कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय किसी दूसरे दल का दामन थामेंगे या कांग्रेस में उन्हें लेकर उपजे अविश्वास को खत्म करने नए सिरे से सक्रिय होंगे, इसे लेकर फिलहाल वह वेट एंड वाच की मुद्रा में हैं। 40 साल से ज्यादा समय से पार्टी से जुड़े किशोर पार्टी के अन्य नेताओं के रवैये से आहत नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह कांग्रेस में ही हैं। पूरे मामले में वह अभी कुछ नहीं कहेंगे। साथ ही यह भी कहा कि समय आने पर पूरी बात खुलकर सामने रखेंगे।
कांग्रेस हाईकमान को किशोर उपाध्याय की भाजपा नेताओं के साथ बढ़ती नजदीकियां रास नहीं आईं। हालांकि किशोर यह स्पष्टीकरण दे चुके हैं कि भाजपा नेताओं से उन्होंने उत्तराखंड के सरोकार से जुड़े वनाधिकार आंदोलन के उनके एजेंडे को लेकर मुलाकात की थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व इस पर विश्वास करने को तैयार नहीं है। बीते रोज उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलों को पार्टी ने गंभीरता से लिया। उन्हें प्रदेश कांग्रेस समन्वय समिति के अध्यक्ष समेत अन्य समितियों में दिए गए पदों से हटाया जा चुका है।
2016 में पार्टी के भीतर हुई बगावत के बाद बतौर प्रदेश अध्यक्ष पूरे प्रदेश में संगठन को एकजुट कर तत्कालीन कांग्रेस सरकार को बचाने की कामयाब मुहिम चला चुके किशोर पार्टी के भीतर अपनी लंबी उपेक्षा के दंश से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। विधानसभा चुनाव के मौके पर कांग्रेस हाईकमान के सख्त रुख के बाद किशोर उपाध्याय के सामने सीमित विकल्प नजर आ रहे हैं। पार्टी के भीतर अविश्वास की खाई गहरी होने और उन्हें सभी पदों से हटाने के निर्णय के बाद वह पार्टी में ही बने रहेंगे या भाजपा या अन्य किसी दल का दामन थाम सकते हैं, इसे लेकर सियासी गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं।