उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सभी राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं। इसके लिए अब एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी का काम शुरू हो गया है। भाजपा इस कड़ी में कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक माने जाने वाले अनुसूचित जाति-जनजाति और अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पाले में करने की मशक्कत में जुट गई है। इसके लिए विधानसभा स्तर पर सम्मेलनों का आयोजन करने के साथ ही इन समुदाय के बड़े नेताओं को भी पार्टी में लाया जा रहा है।
प्रदेश में अल्पसंख्यक व अनुसूचित जाति के वोटर को कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। प्रदेश में मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन व अन्य अवर्णित समुदाय की संख्या कुल आबादी की 17 फीसद है। वहीं 82.97 फीसद हिंदु आबादी का एक बड़ा वर्ग अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय से है। मैदानी जिलों में इनकी बहुलता अधिक है। यही कारण है कि कांग्रेस का मैदानी सीटों पर दबदबा अधिक रहता है। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी भी अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक समुदाय का वोट हासिल करने में कामयाब रहती हैं।
आगामी चुनावों को देखते हुए भाजपा इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने की जुगत में लगी हुई है। भाजपा नेताओं द्वारा दलित कार्यकत्र्ता के घर में भोजन करना इसी रणनीति का हिस्सा है। ऐसा कर भाजपा नेता सामाजिक समसरता का संदेश देते हुए अल्पसंख्यक व अनुसूचित जाति वर्ग को पार्टी से जोड़ने में लगे हुए हैं। साथ ही भाजपा ने इस समय अपने अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ, अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ व अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ को भी पूरी तरह सक्रिय किया हुआ है। इन प्रकोष्ठों के लिए पार्टी ने कार्यक्रम तय किए हुए हैं, जिनमें मोहल्ले से लेकर विधानसभा स्तर तक सम्मेलन व बैठकों का आयोजन किया जा रहा है।