कार्यकाल पूरा कर ही चुनाव में जाना चाहेगी उत्तराखंड सरकार, सिरदर्द बने कई मु्द्दों का हुआ समाधान

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किसी भी सरकार के मुखिया के कामकाज के आकलन के लिए साढ़े पांच माह की अवधि बहुत अधिक नहीं, तो कम भी नहीं कही जा सकती। इस दृष्टिकोण से देखें तो बदली परिस्थितियों में राज्य की कमान संभालने वाले युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने अब तक के कार्यकाल में चुनौतियों से जूझने का जज्बा दिखाया तो सरकार के लिए सिरदर्द बने देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड जैसे विषयों का समाधान कराने में भी सफलता पाई। निर्णय लेने में भी वह देरी नहीं लगा रहे हैं।

मुख्यमंत्री की सक्रियता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देहरादून रैली ने कुछ ऐसा रंग जमाया कि बार-बार मुख्यमंत्री बदलने को लेकर उठ रहे प्रश्नों की धार भी कम हो गई है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए धामी सरकार चाहेगी कि वह कार्यकाल पूरा करने के बाद ही आगामी विधानसभा चुनाव में जनता की चौखट पर जाए। इससे उसे काम करने के लिए कुछ और समय तो मिलेगा ही, साथ ही परिस्थितियों को अधिक अनुकूल बनाने में मदद मिलेगी।

प्रदेश की भाजपा सरकार में दूसरी बार हुए नेतृत्व परिवर्तन के बाद इस वर्ष चार जुलाई को खटीमा के युवा विधायक धामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तब यहां के राजनीतिक गलियारों में भाजपा की ओर से बार-बार मुख्यमंत्री बदलने का प्रश्न तेजी से गूंज रहा था। ऐसे में नए मुख्यमंत्री के सामने कसौटी पर खरा उतरने चुनौती थी, तो भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व को अपने इस निर्णय को सही साबित करने की भी।

धामी ने जब राज्य की कमान संभाली तब एक नहीं अनेक प्रश्न मुंहबाए खड़े थे। धामी ने सबसे पहले बेलगाम नौकरशाही को साधने को जिस तरह साहसिक निर्णय लिए, उससे संकेत दिए कि वे चुप बैठने वालों में नहीं हैं। इसके बाद धामी ने एक के बाद फैसले लिए और प्रदेशभर का दौरा कर घोषणाएं कीं। आपदा के वक्त निरंतर प्रभावित क्षेत्रों में डटे रहे और संदेश दिया कि सरकार जनता की साझीदार है। इस बीच देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को निरस्त कराकर उन्होंने चारधाम के तीर्थ पुरोहितों व हक-हकूकधारियों का दिल जीतने में कामयाबी पाई। साथ ही विपक्ष से यह मुद्दा छीन लिया। इस बीच केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लिए तो किसानों का विषय भी विपक्ष के हाथ से फिसल गया। धामी ने युवा वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो कोविड काल में प्रभावित सभी क्षेत्रों को राहत देने को कदम उठाए।

बदली परिस्थितियों में पार्टी ने भी स्पष्ट कर दिया कि अगला विधानसभा चुनाव धामी की अगुआई में ही लड़ा जाएगा। इस बीच चार दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देहरादून में 18 हजार करोड़ से अधिक की योजनाओं का शिलान्यास व लोकार्पण किया तो इससे भी पार्टी में सकारात्मक वातावरण बना। यही नहीं, कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके पुत्र विधायक संजीव आर्य की घर वापसी से पड़ा असर भी सामान्य हो चला है।

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुमाऊं मंडल में इसी माह के आखिर में विजय संकल्प रैली प्रस्तावित है। माना जा रहा कि प्रधानमंत्री इस रैली में राज्य के लिए कुछ बड़ी घोषणा कर सकते हैं। इस परिदृश्य के बीच प्रदेश सरकार की मंशा होगी कि उसे और अधिक काम करने के लिए कम से कम कार्यकाल पूरा होने तक का अवसर मिले। इसके लिए वह चाहेगी कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले उसे अधिक से अधिक वक्त मिले।

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