कोरोना काल के दानबीर : ठेला चला जीवन यापन करने वाले गौतम दास ने 160 परिवारों को बांटा राशन

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“सेवा और त्याग” केवल भाषण या उपदेश का विषय नहीं है, बल्कि भारत की जीवन पद्धति है. सेवा स्वयं में सुख है, सेवा में ही संतोष है. यही कारण है कि वर्तमान संकटकाल में देश का हर व्यक्ति अपनी तरह से जरूरतमंदों की सेवा में जुटा. दिहाड़ीदार गौतम दास जैसे लोग हमारी इसी जीवन पद्धति का उदाहरण हैं.

अगरतला (त्रिपुरा) : अगरतला के गौतम दास ठेला चलाकर अपना जीवन यापन करते हैं. लॉकडाउन से पूर्व तक प्रतिदिन 200 रुपये कमाते थे. अपने समाजजनों की चिंता ने उन्हें देशवासियों का चहेता बना दिया. गौतम दास ने  संकट के इस दौर में अपनी जमा पूंजी में से जरूरतमंदों की सहायता की. प्रधानमंत्री ने बीते रविबार को अपने “मन की बात” कार्यक्रम में गौतम दास के नेक कार्य की सराहना की. वहीं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देव ने गौतम दास से मिलकर उन्हें सम्मानित किया.

51 वर्षीय गौतम ठेले से सामान ढोने का कार्य करते हैं. उन्होंने प्रतिदिन 200 रुपये की अपनी कमाई में बचत कर 10,000 रुपये की राशि जमा की थी. देश में लॉकडाउन घोषित होने के पश्चात गौतम दास भी अन्य दिहाड़ीदारों के समान ही अपने भविष्य के लिए और आजीविका को लेकर चिंतित थे. लेकिन उससे भी अधिक उन्हें चिंता थी, अपने से गरीब अन्य लोगों की. गौतम दास ने आराम से घर बैठने या स्थिति पर चिंतित होने के स्थान पर शहर में अन्य जरूरतमंदों की अपने स्तर पर सहायता करने का निर्णय लिया और अपनी जमा पूंजी से जरूरतमंदों की सेवा के लिये निकल पड़े.

उन्होंने अपनी जमा की गई राशि से दालें व चावल खरीदे. उनके पैकेट (राशन किट) बनाकर अपने ठेले पर लेकर शहर में गरीबों की सहायता के लिए निकल पड़े, गरीब परिवारों को निःशुक राशन उपलब्ध करवाया. गौतम दास अभी तक 160 परिवारों को राशन के पैकेट बांट चुके हैं, उन्होंने अभी तक आठ हजार रुपये से अधिक की राशि खर्च कर दी है तथा 160 परिवारों को भूख व परेशानी से बचाया.

समाज के वंचित वर्ग से संबंधित होने के बावजूद गौतम दास लॉकडाउन में अपनी आजीविका को लेकर चिंता में नहीं बैठे रहे, बल्कि उन्होंने अपनी तरह अन्य दिहाड़ीदारों, व गरीब परिवारों की चिंता की.

“सेवा और त्याग” केवल भाषण या उपदेश का विषय नहीं है, बल्कि भारत की जीवन पद्धति है. सेवा स्वयं में सुख है, सेवा में ही संतोष है. यही कारण है कि वर्तमान संकटकाल में देश का हर व्यक्ति अपनी तरह से जरूरतमंदों की सेवा में जुटा. दिहाड़ीदार गौतम दास जैसे लोग हमारी इसी जीवन पद्धति का उदाहरण हैं.

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