कोरोना से जंग में जरूरी है स्वामी विवेकानंद का ‘प्लेग मैनिफेस्टो’ पढ़ना; ‘भय से मुक्त रहें, क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है’

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  • स्वामी विवेकांनंद का यह घोषणा पात्र (मैनिफेस्टो) हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
  • प्लेग के दौरान स्वामी विवेकनंद ने बांग्ला भाषा में तैयार इस ‘प्लेग घोषणा पत्र’ को हिंदी में छपवाकर वितरित कराया था।
  • इसका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागृत करना और रोगियों तक मदद पहुँचाना था।
  • इस प्लेग मैनिफेस्टो में विवेकानंद ने कहा था- “भय से मुक्त रहें, क्योंकि भय सबसे बड़ा पाप है।”
  • ऐसा शायद पहली बार हुआ है जब पूरा विश्व किसी संक्रामक महामारी की चपेट में आया है। हालाँकि, कई बड़े देश अलग-अलग समय पर अकाल, प्लेग जैसे बड़े संकटों से गुजर चुके हैं। आज जब दुनिया कोरोना वायरस से उपजी बीमारी का सामना कर रही है, ऐसे में स्वामी विवेकानंद के 1899 के प्लेग घोषणा पत्र का जिक्र ज़रूरी हो जाता है।
  • मार्च, 1899 में जब कलकत्ता में प्लेग फैला था, तब स्वामी विवेकानंद ने प्लेग पीड़ितों की सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन की एक समिति बनाई थी। उनके नेतृत्व में इस समिति में एक प्लेग घोषणा पत्र तैयार किया गया, ताकि स्वयंसेवकों के साथ आम जनता भी इससे अच्छी तरह परिचित हो सके कि किसी आपदा या महामारी के दौरान किन बातों पर किस तरह का संयम बरतने की आवश्यकता होती है। स्वामी विवेकांनंद का यह घोषणा पात्र (मैनिफेस्टो) हमें मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से समस्याओं से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।
  • स्वामी विवेकानंद द्वारा जारी प्लेग मेनीफेस्टो (घोषणा पत्र) का मूल-पाठ
  • कलकत्ता के भाइयों,
  • यदि आप प्रसन्न हों तो हमें भी प्रसन्नता का अनुभव होता है, और आपके दुःख में दुःख का। इसलिए इन कठिन विपरीत दिनों में हम आपके कल्याण के लिए प्रयास कर रहे हैं एवं अविराम प्रार्थना कर रहे हैं, आपको रोग से बचाने का तथा महामारी के भय से बचाने का।
  • इस गंभीर रोग से – जिससे डरकर उच्च व नीच दोनों वर्ग के लोग, धनी और निर्धन नगर छोड़ कर भाग रहे हैं यदि हम पीड़ित हो जाते हैं और आपकी सेवा करते हुए विनष्ट हो जाते हैं तब भी हम अपने आप को भाग्यशाली समझेंगे क्योंकि आप सभी भगवान का स्वरूप हो। वह जो मिथ्याभिमान, अंध विश्वास या अज्ञानता से अन्यथा समझता है भगवान को आहत करता है और भयंकर पाप करता है। इस विषय में न्यूनतम संदेह नहीं है।
  • हम आप से प्रार्थना करते हैं – निराधार भय के कारण संत्रास न करें। भगवान पर भरोसा करें और शांतिपूर्वक समस्या के समाधान का रास्ता खोजने का प्रयास करें। अन्यथा उन्हीं का साथ दें जो वैसा कर रहे हैं।
  • डर कैसा ? प्लेग फैलने के कारण जो आतंक लोगों के दिलों में प्रवेश कर गया है उसका वास्तविक आधार नहीं है। प्रभु की इच्छा से जिस तरह का भयानक प्लेग अन्य स्थानों पर हुआ है वैसा कलकत्ता में नहीं है। सरकारी अधिकारी भी विशेषकर हमारे लिए मददगार साबित हुए हैं। फिर डर कैसा ?
  • आइए, हम भय को त्यागें और भगवान के अनंत स्नेह पर विश्वास रखते हुए कमर कसें और कर्मक्षेत्र में उतरें। आइए हम शुद्ध और स्वच्छ जीवन जिएं। उसकी कृपा से रोग और महामारी का डर हवा में उड़न छू हो जायेगा।
  • (क) हमेशा अपना घर, परिसर, कमरे, कपड़े, बिस्तर और नाली आदि स्वच्छ रखें।
    (ख) बासी और खराब हुआ भोजन न खाएं, इसके बजाय ताजा और पौष्टिक भोजन लें। निर्बल शरीर अधिक रोग प्रवण होता है।
    (ग) हमेशा मन प्रसन्न रखें। हर एक को एक बार मरना है। कायर मृत्यु की टीस से बार बार भुगतते हैं, केवल अपने मन के भय के कारण।
    (घ) डर उनको कभी नहीं छोड़ता जो अनैतिक साधनों से अपनी जीविका कमाते हैं या दूसरों को क्षति पहुंचाते हैं। इसलिए जब हम मृत्यु के बड़े भय के सामने हैं, हमें सब तरह के कदाचार से बचना है।
    (ङ) महामारी की अवधि में हम क्रोध और लोभ से विरत रहें – यद्यपि आप गृहस्थ हों।
    (च) अफवाहों पर ध्यान न दें।
    (छ) अंग्रेज सरकार किसी को जबरन टीका नहीं लागाएगी। केवल उन्हीं को टीका लगेगा जो तैयार हैं।
    (ज) पीड़ित रोगियों के इलाज में हमारे अस्पताल में हमारी परिचर्या और निगरानी में सभी पंथों, जातियों और महिलाओं के शील (पर्दा) का आदर करते हुए कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। धनिकों को भागने दीजिए! लेकिन हम गरीब हैं, हम गरीबों के दिल का दर्द समझते हैं। असहायों की सहायता ब्रह्मांड की मां स्वयं करती है। मां हमें विश्वास दिला रही है: डरो मत! डरो मत!
  • भगिनी निवेदिता और स्वामी विवेकानंद के अन्य मठवासी शिष्य ने कलकत्ता के लोगों की सेवा करने के लिए दिन रात मेहनत की। स्वामी विवेकानंद ने उनसे आग्रह किया – “भाई, यदि तुम्हारी सहायता के लिए कोई नहीं है, तो तुरंत बेलूर मठ में भगवान रामकृष्ण के सेवकों को सूचना भेजो। भौतिक रूप से जो संभव है ऐसी सहायता की कोई कमी नहीं होगी। माँ की कृपा से आर्थिक सहायता भी संभव होगी।”
  • (स्रोत : पूर्ण साहित्य / खण्ड 9/ लेख: गद्य एवं कविताएं। प्रबुद्ध भारत खण्ड 111; 1 मई 2006)

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