भारत पड़ोसी देश चीन के साथ बहुत सतर्क होकर कदम बढ़ा रहा है। भारत-चीन के साथ मधुर रिश्तों का इच्छुक है, लेकिन यह रिश्ता बराबरी, आत्म सम्मान के स्तर पर चाहता है। चीन की धौंस के आगे झुककर नहीं।
नई दिल्ली : आज का भारत 1962 का भारत नहीं है, जो चीन के लाल आखें तरेर ने डर जाय। भारत ने चीन को उसी की भाषा में मुंह तोड़ जवाब देने की पूरी तैयारी कर ली है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रधानमंत्री की आज हुई बातचीत ने दुनिया के देशों को यह नया संदेश दे दिया है। कूटनीति के जानकार इसे भारत-चीन के विवाद में बेहद अहम मोड़ मान रहे हैं।
प्रधानमंत्री से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने अमेरिकी समकक्ष मार्क एस्पर से बात की थी। विदेश मंत्री एस जय शंकर, विदेश सचिव हर्ष वर्धन श्रृंगला भी लगातार सक्रिय हैं। इसके सामानांतर भारत-चीन से भी सीमा विवाद, सीमा पर शांति, सीमा सुरक्षा प्रबंधन को विश्वसनीय और मजबूत बनाने के लिए लगतार संपर्क में है। 06 जून को चीन के साथ होने वाली वार्ता में भारतीय सेना की तरफ से लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के अधिकारी इसका नेतृत्व करेंगे।
कुल मिलाकर भारत संदेश दे रहा है कि सीमा पर चीन की लाल आंखें दिखाने से भारत कहीं से भी असहज नहीं है।
कोई जल्दबाजी नहीं है, देर-सबेर निकलेगा रास्ता। लद्दाख में गालवां नाला और पैंगोग त्सो के पास चीन सैनिकों की अच्छी खासी तादाद है। चीनी वायुसेना के विमानों ने भी क्षेत्र में उड़ान भरी है। इसके जवाब में भारत ने भी तोपों की तैनाती समेत कई कदम उठाए हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, विदेश मंत्री एस जयशंकर, प्रधानमंत्री कार्यालय में विदेश मामलों के अधिकारी गोपाल वागले लगातार तमाम गतिविधियों पर सक्रिय हैं। सीडीएस जनरल रावत की तीनों सेना प्रमुखों से चर्चा के बाद एनएसए, रक्षामंत्री, पीएमओ को दी गई रिपोर्ट भी भारत की तैयारी की तरफ ईशारा कर रही है।
चीन की घुसपैठ को लेकर सेना के एक उच्चधिकारी का कहना है कि अभी तक दोनों तरफ के सैन्य अधिकारियों की बातचीत में कोई नतीजा नहीं निकला है। 06 जून की वार्ता पर हमारी नजर है। इसमें भारत की तरह से 14 कॉर्प्स के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह चीन के अपने समकक्ष के साथ चर्चा कर सकते हैं।
हालांकि सूत्र का कहना है कि इस मामले में भारत को भी निर्णय आने की कोई जल्दबाजी नहीं है। बताते हैं डोकलाम में 73 दिनों तक चीनी सैनिकों के साथ भारतीय सैनिकों के डटे होने की घटना ने काफी कुछ सिखाया है।
सूत्र का कहना है कि देर-सबेर इसका हल निकल आएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के अब तक आए वक्तव्य से भी साफ है कि भारत पड़ोसी देश चीन के साथ बहुत सतर्क होकर कदम बढ़ा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से टेलीफोन पर हुई बातचीत को भी सैन्य कूटनीति, विदेश नीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार काफी अहमियत दे रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय सैन्य मामलों के विभाग से जुड़े एक पूर्व अधिकारी का कहना है कि भारत-चीन के साथ मधुर रिश्तों का इच्छुक है, लेकिन यह रिश्ता बराबरी, आत्म सम्मान के स्तर पर चाहता है।
चीन की धौंस के आगे झुककर नहीं। वायुसेना के पूर्व अध्यक्ष एयरचीफ मार्शल पीवी नाइक भी कहते हैं कि चीन को समझ लेना चाहिए। यह 1962 नहीं है।