दल-बदल करने वाले प्रत्याशियों के पास विजन की कमी, टिकट के बाद वोट के लिए आंसू बहा रहे नेता

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उत्तराखंड की राजनीति के महारथियों में शुमार डॉ.हरक सिंह रावत को आंसुओं के सहारे हमदर्दी हासिल करने की कोशिश करते अक्सर देखा गया है, पर इस बार के विधानसभा चुनाव में कुछ और नेताओं ने भी रोने के पुराने सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। कुमाऊं के बागेश्वर, नैनीताल, रामनगर से लेकर गढ़वाल तक के कई नेता इन दिनों मतदाताओं और समर्थकों के सामने जमकर आंसू बहा रहे हैं। पर मतदाताओं पर नेताओं के इन आसुओं का कितना असर होगा, यह चुनाव के परिणाम ही बताएंगे।

दरअसल, विधानसभा चुनाव में इस बार जमकर दलबदल हुआ। हर कोई किसी भी तरह चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचने की जुगत में लगा दिखाई दिया। ऐसे में सिर्फ भाषण से मतदाताओं को प्रभावित करना मुमकिन नहीं। इसलिए सहानुभूति वोट हासिल करने का ट्रेंड जोरों पर चल पड़ा है। बागेश्वर में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महामंत्री बालकृष्ण, नैनीताल में महिला कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सरिता आर्या और हेम आर्य, रामनगर में पूर्व ब्लॉक प्रमुख संजय नेगी, कालाढूंगी में कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री महेश शर्मा, लालकुआं विधानसभा में कांग्रेस का टिकट घोषित होने के बाद फिर टिकट से वंचित रहने वालीं संध्या डालाकोटी ऐसे ही कुछ नाम हैं, जो मतदाताओं और समर्थकों के सामने ही फफक रहे हैं।

आए दिन किसी न किसी चुनावी सभा में नेताओं के रोने या आंखें भारी होने के वीडियो खूब वायरल करवाए जा रहे हैं। किसी को अपने ऊपर उठ रहे सवालों पर रोना आ रहा है तो कोई पार्टी का टिकट न मिलने को अपने समर्थकों की बेइज्जती बताकर रो रहा है। कोई तीन चुनाव में हार पर रो रहा है तो किसी को कथित महिलाओं के अपमान पर रोना आ रहा है।

दलबदल और बिना विजन के ‘हमदर्दी’ का सहारा
दरअसल विधानसभा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों में अपनी विधानसभा में विकास के विजन की जबरदस्त कमी नजर आ रही है। दल बदल के कारण भाजपा-कांग्रेस के नेता एक दूसरे के दलों पर सीधे हमले भी नहीं कर पा रहे हैं। स्थानीय मुद्दे पूरी तरह चुनाव से गायब हैं और ज्यादातर प्रत्याशियों में कोई भी अपनी विधानसभा का घोषणापत्र जारी नहीं कर पाया है। ऐसे में भविष्य के विजन की कमी के मारे प्रत्याशियों के पास वोट मांगने का एकमात्र जरिया सिर्फ सहानुभूति वोट ही रह जाता है।

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