दिल्ली। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर के अधिकांश राज्यों में जारी हिंसा ने सामान्य जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। सड़कों पर उतरे आम लोगों में बड़ी संख्या में छात्र भी शामिल हैं। संसद से पारित नागरिकता विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद पूरे देश में लागू होगा तो आखिर क्यों पूर्वोत्तर के लोग ही ज्यादा विरोध कर रहे हैं।
दरअसल पूर्वोत्तर के राज्यों में रहने वाले लोगों का एक बड़ा वर्ग इस बात से डरा हुआ है कि नागरिकता बिल के पारित हो जाने से जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी उनसे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी।
एनआरसी ने भी भड़काया असम के लोगों का गुस्सा
असम में नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी की फाइनल लिस्ट से जिन 19 लाख लोगों को बाहर किया गया है उनमें लगभग 12 लाख हिंदू बंगाली शामिल हैं। इस कानून के लागू होने से उनमें से अधिकतर को नागरिकता मिल जाएगी।
असमिया संस्कृति प्रभावित होने का अंदेशा
लोगों को डर है कि अगर नागरिकता विधेयक असम सहित अन्य राज्यों में लागू हो जाता है तो अपने ही प्रदेश में असमिया व अन्य स्थानीय लोग भाषाई रूप से अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उनको यह भी डर है कि असम में आकर बसे बंगाली मुसलमान पहले अपनी भाषा ही लिखते थे लेकिन बाद उन लोगों ने असमिया भाषा को स्वीकार कर लिया। ऐसे लोग फिर से बंगाली को अपना लेंगे।
असम में भाषा का गणित
राज्य में असमिया एकमात्र बहुसंख्यक भाषा है। यहां 48 फीसदी लोग असमिया बोलते हैं। यहां के लोगों को डर है कि यदि नागरिकता विधेयक कानून बनकर लागू होता है तब बंगाली लोग इस भाषा को छोड़ अपनी पुरानी भाषा को अपना लेंगे। इससे असमिया बोलने वालों की संख्या 35 फीसदी पहुंच जाएगी। जबकि असम में बंगाली भाषा बोलने वालों की संख्या 10 फीसदी बढ़कर 38 फीसदी हो जाएगी।
इन राज्यों सहित असम के कई हिस्सों में इसलिए लागू नहीं होगा यह कानून
असम में बोड़ो, कार्बी और डिमासा इलाके संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं। इसलिए, वहां यह कानून लागू ही नहीं होगा। मेघालय, नागालैंड, मिजोरम और मणिपुर जैसे राज्यों में भी यह कानून लागू ही नहीं होगा।