नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के लिए कांग्रेस में घमासान, दावेदारी को लेकर दो खेमों में बंटे विधायक

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उत्तराखंड कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी को लेकर दावेदार विधायकों के बीच घमासान तेज हो गया है। केंद्रीय नेताओं की मौजूदगी में नेता प्रतिपक्ष के नाम पर सहमति बनाने के प्रयास अभी कामयाब नहीं हो पाए। कांग्रेस विधायक दल का नेता कौन होगा, इस प्रश्न का उत्तर तलाशने के लिए पार्टी दिग्गज सोमवार को फिर माथापच्ची करेंगे।

खबर है कि इस मुद्दे पर कांग्रेस विधायक दो खेमों में बंट गए हैं। जातीय संतुलन साधने का पेच भी नहीं सुलझ पाया है। सोमवार को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव वेणु गोपाल 24 अकबर रोड कांग्रेस मुख्यालय में प्रदेश के नेताओं से बातचीत करेंगे।आलाकमान नहीं चाहता कि चुनाव से ऐन पहले पार्टी खेमबाजी में बंटी नजर आए। इसलिए वह कोई बीच का रास्ता निकालने की जुगत में है। बताया जा रहा है कि शनिवार रात पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से भी मिले थे। प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव भी लगातार विधायकों से बातचीत कर रहे हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत से भी उन्होंने गहन मंत्रणा की। रविवार को दिनभर उनके निवास स्थान पर बैठकों का दौर चलता रहा।

प्रदेश कांग्रेस में 11 सदस्यीय विधायक दल में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधानमंडल दल की नेता डॉ. इंदिरा हृदयेश के निधन के बाद 10 विधायक रह गए हैं। ऐसे में इन विधायकों के दो गुटों में बंटने के बाद पार्टी के लिए नेता प्रतिपक्ष का चुनाव करना आसान नहीं रह गया है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि विधानमंडल दल के नेता के साथ प्रदेश अध्यक्ष के बदलने जाने पर विचार किया जा रहा है। ताकि गढ़वाल, कुमाऊं के बीच जातीय संतुलन को साधा जा सके। लेकिन इसके लिए प्रीतम गुट तैयार नहीं है।

ऐसे हो रही गुटबाजी

पार्टी प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, जसपुर के विधायक आदेश चौहान, उत्तरकाशी के विधायक राजकुमार, उपनेता का दायित्य संभाल रहे विधायक करण माहरा को ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी देने पर अड़े हैं। जबकि विधायक ममता राकेश, विधायक फुरकान अहमद इस पक्ष में नहीं माने जा रहे हैं।

विधायक काजी निजामुद्दीन राष्ट्रीय सचिव होने के नाते किसी गुटबाजी में नहीं दिखना चाहते हैं। करन माहरा को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर पार्टी का जातीय संतुलन नहीं सध रहा है। ऐसे में प्रेदश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष दोनों ठाकुर हो जाएंगे। इसके बाद यदि चुनाव संचालन समिति की कमान पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को सौंपी जाती है तो तीनों की प्रमुख पदों पर ठाकुर होने से पार्टी का जातीय गणित गड़बड़ा जाएगा।

ऐसे में पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के फॉर्मूले पर भी विचार किया जा रहा है। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की इस दौड़ में गणेश गोदियाल, प्रदीप टम्टा, गोविंद सिंह कुंजवाल, ममता राकेश, काजी निजामुद्दीन आदि नेताओं के नाम सियासी चर्चाओं में तैर रहे हैं। पार्टी का एक गुट अध्यक्ष के दो कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की भी राय दे रहा है। जिसमें एक गढ़वाल और एक कुमाऊं से हो सकता है।

जानकारों का कहना है कि तेलंगाना में पार्टी ने जातीय समीकरण साधने के लिए यही फॉर्मूला अपनाया था।बहरहाल, इस मुद्दे पर पार्टी के वरिष्ठ नेता अपनी-अपनी खिचड़ी तो पका रहे हैं, लेकिन कोई खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। प्रदेश कांग्रेस का पूरा कुनबा दिल्ली में जुटा है। पार्टी नेता सोमवार तक इस मुद्दे का हल निकलने की बात कह रहे हैं, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह मुद्दा इतना आसान नहीं है, जितना बताया जा रहा है। इसलिए इसका हल निकलने में अभी कुछ दिन और लग सकते हैं। क्योंकि चुनावी वर्ष में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।

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