प्लास्टिक कचरे से सड़क निर्माण से हो रही धन की बचत ; प्लास्टिक सड़कें होती हैं टिकाऊ और मजबूत

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प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करके सड़क बनाने की प्रस्तावना मदुरै के थियागराजार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के प्राध्यापक पद्मश्री राजगोपालन वासुदेवन ने दी थी। उन्हें ‘प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से भी जाना जाता है, उनका कहना था कि प्लास्टिक की वजह से सड़क में गड्ढे नहीं होते हैं। यह सामान्य तरीके से बनाई गई सड़कों की तुलना में बाढ़ और अत्यधिक गर्मी झेलने में ज़्यादा कारगर साबित होते हैं।

नई दिल्ली : केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी स्वच्छ भारत अभियान को कुछ कदम आगे बढ़ाते हुए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने प्लास्टिक कचरे का सदुपयोग करने की पहल शुरू की। जिस प्लास्टिक कचरे को असल स्वरूप में रिसाइकल नहीं किया जा सकता है उसका मंत्रालय सड़क निर्माण में उपयोग कर रहा है। इसके इस्तेमाल से अब तक करीब 1 लाख किलोमीटर सड़क तैयार हो चुकी है। हिन्दुतान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ अगले वित्तीय वर्ष तक सरकार इसकी रफ़्तार दोगुना करने की योजना बना रही है।

सड़कें तैयार करने में प्लास्टिक कचरे के उपयोग का ऐतिहासिक निर्णय सबसे पहली बार साल 2015 में लिया गया था। केंद्र सरकार ने सड़क निर्माण से जुड़े लोगों को अधिसूचना जारी करके यह स्पष्ट कर दिया कि इस काम में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल अनिवार्य होगा। साल 2016 में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस आदेश की आधिकारिक तौर पर घोषणा की। तब से लेकर अब तक 11 राज्यों की लगभग 1 लाख किलोमीटर लम्बी सड़कों में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल हो चुका है।

पिछले दिनों आई रिपोर्ट के अनुसार 1 किलोमीटर सड़क निर्माण के दौरान लगभग 10 टन बिटुमिन की ज़रूरत पड़ती थी। केंद्र सरकार के प्लास्टिक उपयोग करने के आदेश के बाद इस प्रक्रिया में 9 टन बिटुमिन लगता था, यानी हर 1 किलोमीटर सड़क तैयार करने में 1 टन बिटुमिन की बचत होती है। 1 टन बिटुमिन की लागत लगभग 30 हज़ार रुपए तक आती है। इसका मतलब सरकार हर 1 किलोमीटर सड़क निर्माण में लगभग 30 हज़ार रुपए बचा रही है।

प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करके सड़क बनाने की प्रस्तावना मदुरै के थियागराजार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के प्राध्यापक पद्मश्री राजगोपालन वासुदेवन ने दी थी। उन्हें ‘प्लास्टिक मैन ऑफ़ इंडिया’ के नाम से भी जाना जाता है, उनका कहना था कि प्लास्टिक की वजह से सड़क में गड्ढे नहीं होते हैं। यह सामान्य तरीके से बनाई गई सड़कों की तुलना में बाढ़ और अत्यधिक गर्मी झेलने में ज़्यादा कारगर साबित होते हैं।

इसके लिए सबसे पहले एक शहर का नगरीय निकाय पूरे शहर का कचरा इकट्ठा करता है फिर उस प्लास्टिक कचरे को तीन प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है, धुल कर उसकी सफाई, फिर धुलने के बाद उसे सुखाना और अंत में उसका चूरा बनाना। इसमें हर तरह का प्लास्टिक शामिल होता है। प्लास्टिक के कचरे को प्लांट में इतना महीन कर दिया जाता है कि यह 4 एमएम के टुकड़ों में नज़र आने लगता है। फिर प्लास्टिक के यह टुकड़े बिटुमिन के साथ मिलाए जाते हैं, इसके बाद तार और कोल भी मिलाया जाता है। फिर इसे 160 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। अंत में इसका इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जाता है।

सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान की पहल को मद्देनज़र रखते हुए प्लास्टिक कचरे की मदद से कई बेंच भी तैयार की थी। पिछले साल अक्टूबर महीने में पश्चिम रेलवे ने प्लास्टिक कचरे की मदद से मुंबई के चर्च गेट स्टेशन पर 3 बेंच तैयार की थी। पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक़ भारत में 24,940 टन कचरा प्रतिदिन उत्सर्जित होता है जिसमें से 60 फीसद रिसाइकिल कर लिया जाता है। शेष प्लास्टिक कचरा गड्ढों में दबा दिया जाता है, नालों में बहाया जाता है, समुद्र में जाकर प्रदूषण फैलाता है या जलाया जाता है जिससे वायु प्रदूषण होता है।

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