उत्तराखंड में बारिश के दौरान भारी तबाही और 52 से ज्यादा लोगों की मौत के साथ ही करोड़ों की संपत्तियों को नुकसान पहुंचा है। वहीं बारिश का दौर थमने के बाद अब भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों के अनुसार बारिश रुकने के बाद भूस्खलन का खतरा बरकरार रहता है।
ऐसे में आपदा प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियों को थोड़ा अलर्ट रहने की जरूरत है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विक्रम गुप्ता के मुताबिक, वैसे तो उत्तराखंड भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील राज्यों में है और यहां भूस्खलन की घटनाएं प्राय: होती रहती हैं। बारिश के दौरान इसका खतरा और अधिक बढ़ जाता है। दो दिनों तक कुमाऊं क्षेत्र में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई है। ऐसे में इन क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा है।
आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार पूरे राज्य में 84 ऐसे इलाके हैं जो भूस्खलन के लिहाज से अति संवेदनशील हैं। इसके अलावा सैकड़ों की संख्या में ऐसे इलाके भी है जो संवेदनशील जोन में शामिल है। ऋषिकेश से लेकर बदरीनाथ हाईवे और गंगोत्री हाईवे पर ऑलवेदर रोड के 150 किलोमीटर के क्षेत्र में 60 ऐसे जोन हैं जो भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील हैं। पौड़ी में 119, चंपावत में 15, बागेश्वर में 18, पिथौरागढ़ में 17, नैनीताल में ऐसे जोन हैं जो भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील हैं।