वर्ष 2014 से चाय इस देश की सियासत में कामयाबी की प्रतीक बन गई। चाय की सियासत ने देश को दूसरे ओबीसी नेता के रूप में एक दमदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिया लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की 25 सितंबर को चाय डिप्लोमेसी रंग नहीं दिखा सकी। कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य से ठंडे होते सियासी रिश्ते गरम चाय से भी नहीं बदले जा सके और 16 दिन बाद 11 अक्तूबर को यशपाल और भाजपा के साढ़े पांच साल पुराने रिश्ते चकनाचूर हो गए। उनके साथ उनके नैनीताल से विधायक बेटे संजीव आर्य ने भी भाजपा से नाता तोड़ दिया। पिता-पुत्र की घर वापसी से अनुभव और युवा जोश का लाभ कांग्रेस को मिलेगा। इसके व्यापक दूरगामी निहितार्थ भी हैं। दलित चेहरे का कार्ड खेलना कांग्रेस के दिग्गज नेता उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। पंजाब में पहले दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को पिछले माह मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस के प्रभारी की कुर्सी से विदाई लेने वाले रावत ने उत्तराखंड के बड़े दलित चेहरे को भाजपा से वापस कांग्रेस में लाकर भाजपा के समीकरण को धराशायी कर दिया है।
कांग्रेस के दलित विधायक राजकुमार के अलावा दो निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार और राम सिंह कैड़ा के भाजपा का दामन थामने से भाजपा को मिली बढ़त की भी इस कदम से हवा निकल गई है। चुनाव से ऐन पहले हुए इस सियासी बदलाव से भाजपा को जोर का झटका लगा है। ऊधमसिंह नगर जिले में तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान पहले से ही भाजपा के लिए तगड़ी चुनौती बने हुए हैं। पिछले कुछ समय से लगातार हो रही अनदेखी ने पिता-पुत्र के सब्र को तोड़ दिया।पंजाब में दलित सीएम के बाद उत्तराखंड में सरकार आने की सूरत में दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाने के कांग्रेस के दांव ने यशपाल आर्य को भविष्य की संभावना के मद्देनजर पाला बदलने पर अंतिम मुहर लगाई। हरीश रावत की इस चाल से कांग्रेस ने मनोवैज्ञानिक रूप से बढ़त लेने के साथ ही कार्यकर्ताओं में भी नया जोश भर दिया है। अब कांग्रेस में कुमाऊं में नैनीताल क्षेत्र से यशपाल आर्य के अलावा अल्मोड़ा सीट से राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा बड़ा नाम है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में खटीमा से दो बार विधायक रहे यशपाल आर्य ने उत्तराखंड के सभी चारों विधानसभा चुनाव जीते हैं। उनका चंपावत जिले के मैदानी क्षेत्र से भी संबंध रहा है। यूपी के दौर में टनकपुर-बनबसा क्षेत्र खटीमा विधानसभा सीट में शामिल था। संकेत मिल रहे हैं कि आर्य के कांग्रेस में आने से चंपावत और पिथौरागढ़ जिले के कई बड़े नेता दल छोड़ सकते हैं। रावत के इस कदम ने दलित वोटों पर निशाना साध भाजपा को बैकफुट पर ला दिया है। साथ ही भाजपा में दलित चेहरे को लेकर बड़ा संकट खड़ा कर दिया है लेकिन भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एडवोकेट शंकर दत्त पांडेय ऐसा नहीं मानते।कहते हैं कि पार्टी में दलित नेताओं की कमी नहीं है, कांग्रेस दलितों के नाम पर सिर्फ सियासत करती है, जबकि भाजपा उनके लिए ठोस कदम उठाती है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इस वक्त भाजपा के पास गिनेचुने ही दलित चेहरे हैं लेकिन इनमें से कोई भी यशपाल आर्य जैसे बड़े आधार वाला नाम नहीं है। भाजपा में बड़े दलित चेहरे के रूप में पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री और दूसरी बार के सांसद अजय टम्टा ही प्रमुख नाम हैं। मार्च 2017 से 11 अक्तूबर 2021 तक भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे यशपाल आर्य ने भाजपा को फंसा दिया। पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल होने का उनका दांव बेहद सधी और सोची समझी चाल रही। दल छोड़ने के बावजूद भाजपा के लिए उन पर निशाना साधना आसान नहीं रहेगा। साढ़े चार साल से अधिक वक्त तक मंत्री के रूप में उनके कामकाज की कोई भी नाकामी या कोई आरोप मंत्री आर्य से ज्यादा भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करेंगे। इसके बावजूद माना जा रहा है कि भाजपा आर्य को घेरने की रणनीति बनाएगी। इसके लिए वह कांग्रेस सरकार में राजस्व मंत्री के रूप में यशपाल आर्य के कामकाज पर सवाल उठा सकती है,खासकर राष्ट्रीय राजमार्ग 74 में 252 किमी लंबे हरिद्वार से सितारगंज के चौड़ीकरण के लिए 211 करोड़ रुपये के मुआवजा घोटाले को फिर से उछाल सकती है। कृषि भूमि को अकृषि कर किए गए इस मुआवजा घोटाले में 22 लोगों को जेल भेजा जा चुका है। अब भाजपा फिर से इस घोटाले को मंत्री के रूप में यशपाल आर्य और कांग्रेस की विफलता के रूप में गिना सकती है। ताकि बड़े दलित नेता के भाजपा छोड़ने से होने वाले नुकसान की भरपाई की संभावना बन सके, लेकिन कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री और पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल कहते हैं कि भाजपा की यह कोशिश कतई सफल नहीं होगी। भाजपा की यह प्रवृत्ति रही है कि वह खुद को ईमानदार और दूसरों को दागदार साबित करने पर तुली रहती है।