- राजनीतिक शिष्टाचार का हनन
- प्रधानमंत्री का अपमान देश का अपमान
- राजनीतिक पराजय की भड़ास
देशवासियों द्वारा वर्तमान राजनीति से बेदखल, बेअसर और बेरोजगार कर दिए गए कुछ अप्रासांगिक राजनीतिक दलों द्वारा भारत के प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर ‘बेरोजगार दिवस’ मना कर एक अत्यंत घिनौनी और निम्नस्तरीय हरकत की है। यह ‘दिवस’ आगे पीछे किसी और दिन भी मनाया जा सकता था।
जिस समय प्रधानमंत्री के करोड़ों प्रशंसक भारतवासी, पारिवारिक जन और छोटे बड़े प्राय: सभी देशों के शासक भारत के प्रधानमंत्री को बधाइयों के संदेश भेज रहे थे, उसी समय इस प्रकार की घटिया राजनीति करके इन दलों ने भारत, भारत की जनता और श्री नरेंद्र मोदी की माताश्री का घोर अपमान किया है।
शायद ही संसार का कोई ऐसा देश होगा, जिसके विपक्षी दल अपने प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर उसकी तथाकथित और बेबुनियानी कमजोरियों का ढिंढोरा पीटते हों। लोकतांत्रिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ तो कदापि नहीं होता कि सभी राजनीतिक परंपराओं और शिष्टाचार को तिलांजलि दे दी जाए।
अगर ऐसा ही है तो फिर देश का विभाजन स्वीकार करने, दो तिहाई कश्मीर और लद्दाख के बड़े क्षेत्र को पाकिस्तान और चीन को सौंपने, लार्ड मैकाले की शिक्षा को लागू करने वाले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन को एक ‘कलंक दिवस’ के रूप में मनाया जाए।
• लोकतंत्र की हत्या करके देश को निकुंश तानाशाही (आपातकाल) की आग में झोंकने वाली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जन्मदिन को ‘लोकतंत्र हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाए। भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताने वाली सोनिया गांधी के जन्मदिन को ‘धिक्कार दिवस’ के रूप में मनाया जाए। कोट के ऊपर जनेऊ पहन कर अपने गोत्र और जाति पर झूठ बोलने वाले, हिन्दुओं को आतंकवादी कहने वाले मुहम्मद फिरोज खान के पोते राहुल गांधी के जन्म दिवस को ‘वर्ण संकर दिवस’ के रूप में मनाया जाए।
• सुभाष चन्द्र बोस को ‘जापान का कुत्ता’ कहने वाले, महात्मा गांधी को ‘साम्राज्यवादी एजेंट’ कहने वाले, कश्मीर को पाकिस्तान का अभिन्न हिस्सा मानने वाले और 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भारत को ही हमलावर बता कर चीन के राष्ट्रपति माओ को ‘माओ हमरा चेयरमैन’ बताने वाले सभी साम्यवादी नेताओं के जन्म दिवस क्यो ना ‘कम्युनिस्ट गद्दार दिवस’ के रूप में मनाऐ जाए।
दरअसल मोदी विरोधी गैंग द्वारा सम्पन्न इस ‘बेरोजगार दिवस’ का संबंध देश के युवकों के साथ कतई भी नहीं था। यह तो अपनी राजनीतिक जमीन और सामाजिक औकात खो चुके उन दलों की वह पीड़ा थी जो पिछले कई चुनावों में देश की जनता ने इन्हें इनके कर्मफल के रूप में दी है। इन लोगों को यही समझ में नहीं आ रहा कि इनका थूका हुआ इनके ही मुंह पर गिर रहा है।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कुछ हद तक बिगड़ी देश की अर्थव्यवस्था करोना महामारी के कारण है। करोना की समस्या पूरे विश्व में व्याप्त है। ऐसी परिस्थिति में ‘लाकडाउन’ जैसे उपाय करने पड़ते हैं। भारत की स्थिति तो अभी भी कई बड़े देशों से अच्छी है। विपक्षी दलों को राष्ट्र हित के कदम उठाने चाहिएं। मोदी विरोध में देश एवं समाज के सम्मान पर चोट करके अपनी पराजित एवं घटिया राजनीति का प्रदर्शन करना देश के हित में नहीं होता। (वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)