साल की आखिरी आसमानी आतिशबाजी बेहद रोमांचक होने वाली है। इस आतिशबाजी यानी उल्कावृष्टि का नजारा सोमवार आधी रात से भोर तक देखने को मिलेगा। इस दौरान प्रति घंटा 50 से अधिक जलती उल्काओं को गिरते हुए देखा जा सकेगा।
आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा.शशिभूषण पांडेय के अनुसार उल्कावृष्टि हमारे सौरमंडल की आकर्षक खगोलीय घटनाओं में शामिल है। आम बोलचाल में इन्हें तारा टूटना कहा जाता है। मगर यह घटना तारे टूटने से नही बल्कि पृथ्वी के वातावरण में किसी धूमकेतु से छोड़ी गई उल्काओं के जलने से होती है। सोमवार रात से मंगलवार भोर तक भी आकर्षक उल्टावृष्टि होगी। जिसमें प्रति मिनट जलती उल्का का नजारा दिखने का आकलन है।
यह उल्कावृष्टि मिथुन राशि की दिशा में देखी जा सकती है। इसलिए इसे जेमिनीड मेटिओर शावर यानी मिथुन उल्कावृष्ठि का नाम दिया गया है। इस नजारे को चंद्रमा के अस्त होने के बाद बेहतर देखा जा सकता है। यह उल्कावृष्टिï 3200 फैथान नामक धूमकेतु के छोड़े गए मलबे यानी उल्काओं के कारण होगी। इन दिनों पृथ्वी इस मलबे से होकर गुजर रही है और पृथ्वी के वातावरण में आते ही उल्काएं जलने लगेंगी और आतिशबाजी जैसा नजारा देखने को मिलेगा।