लखनऊ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा मोहन भागवत इन दिनों अवध प्रान्त के प्रवास पर हैं उन्होंने अपने प्रवास के दूसरे दिन रुद्राक्ष का पौधा रोपा तथा गतिविधियों से जुड़े प्रान्त स्तर के कार्यकर्ताओं की बैठक भी ली.
बैठक में उन्होंने कहा कि परिवार असेंबल की गयी इकाई नहीं है, यह संरचना प्रकृति प्रदत्त है, इसलिये हमारी जिम्मेदारी उनकी देखभाल करने की भी है. साथ ही कहा कि हमारे समाज में परिवार की एक विस्तृत कल्पना है, इसमें केवल पति, पत्नी और बच्चे ही परिवार नहीं है, बल्कि बुआ, काका, काकी, चाचा, चाची, दादी, दादा आदि यह सब भी प्राचीन काल से हमारी परिवार संकल्पना में रहे हैं. इसलिये परिवार में प्रारंभ काल से ही बच्चों के अंदर संस्कार निर्माण करने की योजना होनी चाहिए. उनके अंदर अतिथि देवो भवः का भाव उत्पन्न करना चाहिये और समय-समय पर उन्हें महापुरुषों की कहानियां व उनके संस्मरण भी सुनाए व सिखाए जाने चाहिये.
सरसंघचालक जी ने सामाजिक समरसता के विषय में कहा कि कोई भी ऐसी जाति नहीं है, जिसमें श्रेष्ठ, महान तथा देशभक्त लोगों ने जन्म नहीं लिया हो. मंदिर, शमशान और जलाशय पर सभी जातियों का समान अधिकार है. महापुरुष केवल अपने श्रेष्ठ कार्यों से महापुरुष हैं और उनको उसी दृष्टि से देखे जाने का भाव भी समाज में बनाए रखना बहुत आवश्यक है. गौ आधारित व प्राकृतिक खेती के लिये भी समाज को जागृत व प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है.
उन्होंने पिछले दिनों पर्यावरण गतिविधि और हिन्दू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन द्वारा किये गये प्रकृति वंदन कार्यक्रम की सराहना की तथा कार्यकर्ताओं से समाज में देशहित, प्रकृति हित में किसी भी सामाजिक सगंठन, धार्मिक संगठन द्वारा किये जाने वाले कार्य में संघ के स्वयंसेवकों को बढ़कर सहयोग करना चाहिये. बैठक में कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, गौ सेवा, ग्राम विकास, पर्यावरण, धर्म जागरण, और सामाजिक सद्भाव गतिविधियों से जुड़े कार्यकर्ता उपस्थित थे.