प्रदेश में दलबदल की सियासत खासतौर पर बागियों की आमद को लेकर कांग्रेस असहज है। यह अंदेशा जताया जा रहा है कि बागियों और निष्कासितों की वापसी से बुरे वक्त में पार्टी के साथ मजबूती से खड़े रहे नेताओं और कार्यकर्त्ताओं के मनोबल पर बुरा असर पड़ सकता है। पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष हरीश रावत ने ये संकेत दे दिए हैं कि वापसी करने वालों या बाहर से आने वाले नए चेहरों के लिए रेड कार्पेट नहीं बिछाया जाएगा। अलबत्ता, भाजपा के भीतर बागियों में बढ़ती बेचैनी को सतह पर लाने के लिए माइंड गेम खेलने में भी रावत पीछे रहने वाले नहीं हैं।
2022 का चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल एकदूसरे में सेंधमारी कर चुके हैं। मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने को दलबदल की यह सियासत पार्टी की मुश्किलें भी बढ़ा रही है। 2017 के चुनाव में बुरी शिकस्त के बाद पार्टी के साथ खड़े रहकर खम ठोकने वाले नेताओं को टिकट की दौड़ में पिछड़ने का अंदेशा सता रहा है। चुनाव के वक्त इन नेताओं में उपज रहे असंतोष को देखते हुए पार्टी अलर्ट हो गई है। अंदरखाने इस असंतोष को साधने की कवायद शुरू कर दी गई है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल यह साफ कर चुके हैं कि बागियों की घर वापसी के बावजूद पहले से चुनाव क्षेत्रों में मजबूती से तैयारी कर रहे पार्टी नेताओं के हितों की अनदेखी नहीं होगी। कांग्रेस के चुनाव अभियान के रणनीतिकार पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की बागियों के प्रति सख्ती और रेड कार्पेट नहीं बिछाए जाने के संकेत को आंतरिक असंतोष को साधने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
बागियों को उज्याड़ू बल्द, महापापी, सांप-नेवले से लेकर लोकतंत्र के रावण करार दे चुके हरीश रावत ने रुख में नरमी के संकेत तो दिए, साथ ही यह भी साफ कर दिया कि सिर्फ चुनाव की दृष्टि से फायदेमंद व्यक्तियों की ही घर वापसी होगी। यही नहीं बागियों की वापसी से ज्यादा उन्हें लेकर भाजपा की किरकिरी पर उनकी नजरें हैं। बागियों में बढ़ती छटपटाहट हरदा को खूब रास आ रही है।