स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती व स्वामी वासुदेवानंद दोनों ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य नही; तीन माह में हो चुनाव -हाईकोर्ट

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  • हाईकोर्ट ने ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की नियुक्ति को सही नहीं माना
  • स्वामी वासुदेवानंद को भी शंकराचार्य मानने से कोर्ट का इनकार
  • कहा तीन माह में चुनाव हो. तीनों पीठों के शंकराचार्य मिलकर करें ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य का चयन 

इलाहाबाद (एजेंसीज) :  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की नियुक्ति को सही नहीं माना है और तीन माह के अंदर नए शंकराचार्य की नियुक्ति का आदेश दिया है।  कोर्ट ने कहा है कि तीन माहीने के दरमियान बाकी तीन पीठों के शंकराचार्य मिलकर ज्योतिष्पीठ के लिए योग्य शंकराचार्य का चयन करेंगे।

कोर्ट ने स्वामी वासुदेवानंद को भी शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया। यानी ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य पद पर दोनों  स्वामी स्वरूपानंद और स्वामी वासुदेवानंद का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ज्योतिष्पीठ को लेकर दीवानी अदालत की स्थायी निषेधाज्ञा नई नियुक्ति तक बरकरार रहेगी। कोर्ट ने सरकार से कहा कि लोगों को फर्जी बाबाओं से बचाने के लिए कदम उठाएं।

ज्योतिष्पीठ-बदरिकाश्रम के शंकराचार्य पद को लेकर स्वरूपानंद सरस्वती व वासुदेवानंद सरस्वती के बीच विवाद पर हाईकोर्ट  ने यह  फैसला सुनाया। महीनों चली बहस के बाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर अग्रवाल एवं जस्टिस केजे ठाकर की खंडपीठ ने इसी वर्ष तीन जनवरी को सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को इस विवाद के शीघ्र निस्तारण का आदेश दिया था । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में हाईकोर्ट ने लगातार दिन-प्रतिदिन सुनवाई की।

गौरतलब है कि दीवानी अदालत ने पांच मई 2015 को ऐतिहासिक निर्णय देकर स्वामी वासुदेवानंद द्वारा स्वयं को ज्योतिष्पीठ- बदरिकाश्रम का शंकराचार्य घोषित को अवैध करार दिया था। यही नहीं निचली अदालत ने शंकराचार्य स्वरूपानंद के दावे को स्वीकार कर यह भी आदेश दिया था कि वासुदेवानंद सरस्वती न तो अपने को ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य घोषित करेंगे और न ही शंकराचार्य पद के लिए विहित क्षेत्र, चंवर व सिंहासन का प्रयोग ही करेंगे।

निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल करके निचली अदालत के  फैसले को चुनौती दी थी। साथ ही अधीनस्थ अदालत के आदेश पर रोक लगाने की मांग की लेकिन पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी भी प्रकार का अंतरिम आदेश देने से इंकार कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में अपना अंतिम फैसला ही सुनाएगी।

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