तिब्बती संस्कृति, धार्मिक और भाषाई पहचान के संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता: दलाई लामा

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दिल्ली। तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने एक साक्षात्कार में कहा कि तिब्बती मुद्दा अब राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं रहा। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि तिब्बत की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान के संरक्षण पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है। दलाई लामा ने सवाल किया कि राजनीतिक स्वतंत्रता मुख्य रूप से लोगों की खुशी के लिए है, लेकिन क्या यह अकेले खुशी की गारंटी हो सकती है। 

उन्होंने कहा कि ‘चीन में शीर्ष नेताओं के बीच यह भावना बढ़ रही है कि उनकी नीतियां पिछले 70 वर्षों में तिब्बत मुद्दे को हल नहीं कर पाई हैं, इसलिए उन्हें अधिक यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। भले ही तिब्बत एक स्वतंत्र देश था, लेकिन आज राजनीतिक रूप से चीन का तिब्बत पर कब्जा है।’ दलाई लामा ने कहा कि ‘वर्तमान परिस्थितियों में, मैं कुछ समय से कह रहा हूं कि तिब्बती संस्कृति, धार्मिक और भाषायी पहचान के संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अब यह राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष नहीं रहा।’

हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज में दिए गए साक्षात्कार में, दलाई लामा ने यह भी कहा कि तिब्बती लोग जब तक अपनी हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक विरासत, धर्म और पहचान को संरक्षित रख पाएंगे, वह उन्हें आंतरिक शांति और खुशी प्रदान करेगा। उन्होंने कहा, ‘इसके लिए, मैं वास्तव में विविधता में एकता के लिए भारतीय संघ की प्रशंसा करता हूं। इसी तरह से तिब्बत की सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक पहचान को  ध्यान में रखते हुए पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और तिब्बत सह-अस्तित्व में रह सकते हैं।’

उन्होंने कहा कि आज, भारत और तिब्बत न केवल राजनीतिक या आर्थिक कारणों से, बल्कि आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से भी अत्यंत करीब हैं। तिब्बत को चीनी कब्जे से बचाने के लिए 14वें दलाई लामा ने वर्ष 1959 में तिब्बत छोड़ दिया था और अभी अपने उत्तराधिकारी को लेकर वह चीन पर तीखा हमला करते रहते हैं।

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