दिल्ली। गांधी परिवार के बिना कांग्रेस पार्टी क्या आगे बढ़ सकती है, यह सवाल अनेकों बार सामने आ चुका है। इसका जवाब भी सभी लोग अपनी सुविधानुसार देते रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की बात करें तो कुछ नेताओं को छोड़कर बाकी सभी एक स्वर में गांधी परिवार के सहारे ही आगे कदम रखने की बात कहते हैं। कर्नाटक में चल रहा सियासी संकट कांग्रेस के उन नेताओं की पहली परीक्षा है जो गैर-गांधी थ्योरी पर चलने की मंशा रखते हैं। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद गैर गांधी नेताओं के लिए कर्नाटक संकट को सुलझाना एक बड़ी परीक्षा है। अगर वे इसमें कामयाब हो जाते हैं तो पार्टी में गैर गांधी थ्योरी को बल मिलना तय है।
बता दें कि पिछले साल कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 78 सीटें मिली थी। जेडीएस के खाते 38 सीटें आई। भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई, लेकिन सरकार नहीं बना सकी। सरकार बनाने के जरुरी बहुमत से भाजपा केवल दस सीट पीछे रह गई। चूंकि केंद्र में भाजपा की मजबूत सरकार थी, इसलिए कर्नाटक में यह शोर मच गया कि भाजपा सरकार बनाने के प्रयासों में लग गई है।
उस वक्त कांग्रेस के 78 विधायकों में भी टूट की संभावना जैसी खबरें सामने आने लगी। दूसरी ओर, जेडीएस विधायकों में भी बड़े पैमाने पर सेंध लगने का खतरा मंडरा रहा था। कांग्रेस के एक नेता बताते हैं, ऐसा नहीं है कि उस वक्त भाजपा ने कर्नाटक में सरकार बनाने का प्रयास नहीं किया। भाजपा ने सरकार में आने के लिए हर संभव प्रयत्न किया। कांग्रेस और जेडीएस विधायकों को तोड़ने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी थी।
राहुल गांधी की इस रणनीति ने भाजपा को कर दिया था चारों खाने चित्त
कर्नाटक से जब ये खबरें आने लगी कि भाजपा देर-सवेर वहां सरकार बना सकती है तो कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐन मौके पर ऐसी रणनीति बनाई, जिससे भाजपा चारों खाने चित्त हो गई। भले ही वहां कांग्रेस के पास 78 सीटें थी, लेकिन भाजपा को सत्ता में आने से रोकने और विपक्षी एकता को मजबूती प्रदान करने के लिए राहुल गांधी ने 38 सीटों वाली जेडीएस को समर्थन दे दिया।
कांग्रेस के समर्थन से एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बन गए। उनके शपथग्रहण समारोह में तकरीबन सभी विपक्षी दलों के बड़े नेता मौजूद रहे। राहुल की इस रणनीति को न केवल कांग्रेसियों की सराहना मिली, बल्कि विपक्षी दलों में भी यह संकेत चला गया कि राहुल गांधी ऐसे मुश्किल समय में बड़े निर्णय ले सकते हैं। उन्होंने कर्नाटक की सियासत के बहाने विपक्ष की एकजुटता को मजबूती प्रदान करने के लिए एक संयुक्त मंच तैयार कर दिया था।
अब राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं हैं, ऐसे में उन नेताओं के कर्नाटक संकट का हल निकालना किसी बड़ी परीक्षा से कम नहीं है, जो गैर-गांधी थ्योरी के आधार पर पार्टी को आगे ले जाने की बात कहते हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस ने सदन में कर्नाटक का मुद्दा उठाया है। पार्टी नेता गुलाम नबी आजाद ने कर्नाटक संकट के लिए सीधे तौर पर भाजपा को जिम्मेदार ठहरा दिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम के.सिद्धारमैया व केसी वेणुगोपाल कर्नाटक के सियासी संकट को हल करने के प्रयासों में लगे हैं।
कर्नाटक का सियासी संकट इन नेताओं के लिए परीक्षा की घड़ी है
कांग्रेस पार्टी में जब कहीं पर भी ऐसा संकट आता है तो उसे सुलझाने के लिए सबसे पहले अहमद पटेल की ओर देखा जाता है। उन्हें सोनिया गांधी और राहुल गांधी का खास विश्वस्त माना जाता है। इसके बाद मोतीलाल वोरा, अशोक गहलौत, कमलनाथ, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, केसी वेणुगोपाल, पी चिदंबरम, अंबिका सोनी, अधीर रंजन चैधरी, शीला दीक्षित, के.सिद्धारमैया, मुकुल वासनिक, कैप्टन अरमेंद्र सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरुर, अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल आदि नेताओं को भी पार्टी में विशेष तव्वजो दी जाती है। इनके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, भंवर जितेंद्र सिंह, रणदीप सुरजेवाला, आशा कुमारी, शैलजा, आरपीएन सिंह व कई दूसरे नेता भी राहुल के विश्वासपात्र रहे हैं।