दिल्ली। मुंबई हाईकोर्ट ने आज टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा, वर्तमान चेयरमैन एन चंद्रशेखर और अन्य आठ लोगों के खिलाफ चल रही आपराधिक मानहानि मामले में चल रही कार्रवाई को रद्द कर दिया है। शहर की मजिस्ट्रेट अदालत ने दिसंबर 2018 में नुस्ली वाडिया द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में रतन टाटा और अन्य को नोटिस जारी किया था। टाटा समूह की कंपनियों के निदेशक मंडल से बाहर किए जाने के बाद वाडिया ने यह मामला 2016 में दायर किया था। उसके बाद टाटा व अन्य ने उच्च न्यायालय में संपर्क कर उन लोगों के खिलाफ शुरू की गयी कार्रवाई को खारिज करने का आग्रह किया था।
दिसंबर 2018 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने रतन टाटा और अन्य के खिलाफ आपराधिक मानहानि केस में नोटिस जारी किया था। नुस्ली वाडिया ने 2016 में कंपनी से डायरेक्टर पद से बाहर किये जाने पर मामला दर्ज कराया था। इसके जवाब में रतन टाटा और अन्य ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। टाटा और अन्य आठ डायरेक्टरों ने हाई कोर्ट से गुहार लगाई कि उनके खिलाफ चल रही कार्रवाई को रद्द किया जाएं। इसकी सुनवाई करते हुए जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डंगरे की पीठ ने केस रद्द कर दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने रतन टाटा का पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया कि मानहानि का मामला असल में एक कॉरपोरेट विवाद का नतीजा है। उन्होंने कहा कि पूरा केस बिना दिमाग लगाए दायर किया गया है।
नुस्ली वाडिया ने कोर्ट को बताया कि मामला 24 अक्टूबर 2016 को सायरस मिस्त्री को ग्रुप चेयरमैन के पद से हटाने के बाद का है। उन्होंने बताया कि उन्हें षडयंत्र के तहत कंपनी से निकाला गया है।
वाडिया टाटा ग्रुप में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के पद पर नियुक्त थे। इसके अंतर्गत टाटा ग्रुप ऑफ होटल, टाटा स्टील और टाटा मोटर आते हैं। वाडिया ने बताया कि वह कंपनी के जवाब से संतुष्ट नहीं थे। इसलिए उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
टाटा कंपनी का पक्ष रखते हुए वकील सिंघवी ने कहा कि कंपनी ने वाडिया को इसलिए निकाला क्योंकि वे कंपनी के हितों के खिलाफ काम कर रहे थे।