लखनऊ। देहरादून। हिन्दू महासभा के उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष व हिन्दू समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कमलेश तिवारी की बीते कल दिन दहाड़े जिस तरह से उनके आवास पर तालिबानी अंदाज में हत्या की गयी है उसे लेकर शासन-प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है। इस हत्या को सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश और केन्द्र की भाजपा सरकारों की हिन्दुत्ववादी सोच को दी जाने वाली चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।
जिस तरह से भगवा वेश में हत्यारों ने कमलेश तिवारी के घर में प्रवेश किया और उन्हे गोली मारने के बाद चाकुओं से दर्जन भर से अधिक वार किये गये वह हमलावरों के प्रतिशोध का साफ संकेत है। भले ही पुलिस ने घटन के महज 24 घंटे के अंदर ही गुजरात से तीन आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया हो जिसकी पुष्टि खुद डीजीपी ओ.पी.सिंह कर रहे है तथा उन्होने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया हो जिसकी पुष्टि गुजरात एटीएस के अधिकारी हिमांशु शुक्ला द्वारा की जा रही है लेकिन अभी भी इस हत्याकांड के पीछे कई ऐसे सवाल सुलग रहे है जिनका जवाब तत्काल मिल पाना मुश्किल है।
तिवारी हत्याकांड के पीछे उनका 2015 में पैगम्बर मुहम्मद पर दिया गया वह आपत्तिजनक बयान ही माना जा रहा है जिसे लेकर धार्मिक कट्टर वादियों ने उनका सर कलम करने पर इनाम की घोषणा की थी। सवाल यह है कि जब इस हत्या को पुलिस इस्लामिक स्टेट संगठन से जोड़ रही है तो डीजीपी इस हत्याकंाड में किसी आंतकी के होने से क्यों इन्कार कर रहे है। जब गुजरात एटीएस एक साल पहले इस्लामिक स्टेट के आंतकियों द्वारा उनकी हत्या करने का शक जता चुकी थी और खुद तिवारी देश के पीएम और होम मिनिस्टर से 13 अक्टूबर को अपनी सुरक्षा बढ़ाने की गुहार लगा चुके थे तब उनकी सुरक्षा पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ क्या सिर्फ कानून व्यवस्था पर सिर्फ भाषण दे सकते है यह सवाल भी इस हत्याकांड के बाद स्वाभाविक है। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने व देश भर में उसके बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरने के साथ ही जिस हिन्दुत्ववादी सोच में उफान आया है क्या तिवारी हत्याकांड उसकी परिणिति है? क्या इस सोच से देश का धर्म निरर्पेक्ष चेहरा बिगड़ता जा रहा है और समाज में कट्टरवादी सोच को हवा मिल रही है? बीते कुछ सालों में माब लिचिंग की घटनाओं को लेकर भी कुछ ऐसे ही सवाल उठते रहे है। जिनका समुचित जवाब ढूंढा जाना जरूरी है। क्योंकि इस तरह का सामाजिक टकराव या विद्वेष किसी भी सूरत में राष्ट्र के लिए हितकर नहीं हो सकता है। हालंाकि अभी इस हत्याकांड का कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है क्योंकि अभी इसका पूरा सच सामने आना बाकी है लेकिन यह हत्या इस्लामिक कट्टरपंथी सोच की देन है तो यह आरएसएस और भाजपा की हिन्दुत्ववादी सोच के लिए एक बड़ी चुनौती है।