श्रीनगर : धर्मांध जिहादियों से त्रस्त कश्मीर घाटी के युवाओं का जिक्र करते ही बेशक कइयों के दिमाग में पथराव करती भीड़ और हाथ में कलाशिनकोव थामे युवा आतंकी की या फिर आइएसआइएस और अलकायदा को अपना आदर्श मानने वाले युवकों की तस्वीर उभरती हो। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। स्थानीय युवाओं के लिए बुरहान या जाकिर मूसा नहीं बल्कि उनके लिए शाह फैसल, बशीर अंजुम, तजम्मुल इस्लाम, उमर फैयाज, चनदीप सिंह और जायरा वसीम रोलमॉडल हैं।
मकान में लगी आग ने इनके हौसलों को बनाया और बुलंद
पीरपंजाल की पहाड़ियों के बीच स्थित सुरनकोट (पुंछ) जो कभी आतंकियों के लिए लिबरेटिड जोन माना जाता था, के रहने वाले अंजुम बशीर खटाक ने हाल ही में राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा के घोषित परिणामों में पहला स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने अपनी सफलता अपने आप में खास है, क्योंकि लगभग 18 साल पहले आतंकियों ने जिहाद और इस्लाम के नाम पर उनके घर में दाखिल होकर उनके बड़े भाई को अपने साथ ले जाने का प्रयास किया था। लेकिन नाकाम रहने पर आतंकियों ने उनके पूरे मकान को जला दिया था।
पूरे परिवार को शरणार्थियों की तरह जम्मू में शरण लेनी पड़ी थी। उस समय बशीर अंजुम नौ साल के थे। वह उन दिनों का याद करते हुए कहते हैं कि मकान में लगी आग ने मेरे हौंसलों को और बुलंद बनाया। शिक्षा ही किसी नौजवान का भविष्य बदलने का सही तरीका है और मैं अपने पैतृक इलाके में शिक्षा के प्रसार के लिए काम करुंगा। अगर मैं सुरनकोट और पुंछ के लोगों की बेहतरी के लिए काम करने में असमर्थ हूं तो फिर इस सफलता के कोई मायने नहीं हैं। अफसर बनने से ज्यादा जरुरी तो समाज की मदद करना है,उस समाज से जिससे आप निकले हैं।
शाह फैसल से प्रेरित हैं युवा
कश्मीर घाटी में अगर बीते सात-आठ साल से आइएएस और आइपीएस की परीक्षा में सफलता अर्जित करने वाले स्थानीय युवाओं की संख्या लगातार बड़ रही है तो उसका श्रेय डा. शाह फैसल को ही जाता है। वर्ष 2008 के वादी में श्री अमरनाथ भूमि विवाद को लेकर हुई हिंसा के बाद वर्ष 2009 की सीविल सर्विसीज की परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त कर डा. शाह फैसल ने सभी को हैरान कर दिया था।
उत्तरी कश्मीर में जिला कुपवाड़ा से संबधित डा. शाह फैसल भी आतंकवाद पीड़ित हैं। उनके पिता को वर्ष 2002 में आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि वह आतंकियों को अपने घर में शरण देने के खिलाफ थे। आइएएस करने के बाद राज्य में अपनी सेवाएं दे रहे डा शाह फैसल अब कश्मीर के युवाओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बैठने, शिक्षा व समाज सेवा के प्रसार के लिए प्रेरित करते नजर आते हैं।
तजम्मुल इस्लाम की जीत का असर
बांडीपोर के तरकपोरा गांव की रहने वाली तज्जुमल इस्लाम ने वर्ष 2016 में एंड्रिया इटली में आयोजित सब जूनियर विश्व किक बाक्सिंग प्रतियोगिता जीत सनसनी फैला दी थी। वह सब जूनियर वर्ग में आठ वर्ष की आयु में ही विश्व विजेता बनने वाली दुनिया की पहली लड़की है। तजुम्मल की यह उपलब्धि कश्मीर में तालिबानी इस्लाम लागू करने के मंसूबे पालने वालों के मुंह पर तमांचा है, क्योंकि वह उसी बांडीपोर जिले से संबंध रखती है, जहां करीब दस साल पहले लश्कर के आतंकियों ने मोबाइल रखने पर कुछ लड़कियों के बाल काटे थे।
सेना के गुडविल स्कूल की छात्रा तजम्मुल की जीत का असर बीते एक साल के दौरान देश-दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आयोजित मार्शल आर्ट की विभिन्न प्रतियोगिताओं में कश्मीर के लड़के लड़कियों की लगातार बड़ती भागेदारी में देखा जा सकता है।
पर्वतरोहियों की नई पौध के आदर्श हैं रणवीर सिंह जंवाल
लेफ्टिनेंट कर्नल रणवीर सिंह जंवाल जम्मू कश्मीर में तैयार हो रही पर्वतरोहियों की नई पौध के आदर्श हैं। जम्मू के साथ सटे बडोढ़ी गांव के रहने वाले लेफिटनेंट कर्नल रणवीर सिंह जंवाल ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर वर्ष 2016 मेंं तीसरी बार चढ़ाई कर तिरंगा फहराया है। उन्होंने पहली बार 25 मई 2012 को, दूसरी बार 19 मई 2013 और तीसरी बार 19 मई 2016 को एवरेस्ट फतह किया।
वह सेना की डोगरा रेजिमेंट में बतौर जवान भर्ती हुए थे, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत और काबलियत से वह आर्मी कैडेट कालेज से उत्तीर्ण हो ,सेना की जाट रेजिमेंट में आफिसर के रूप में कमीशन हुए थे। वर्ष 2012-13 में तेनजिंग दोर्जेे सम्मान से सम्मानित लेफिटनेंट कर्नल रणवीर सिंह ने दक्षिण अमरीका और अफ्रीका महाद्वीप की 20 से ज्यादा चोटियों पर भी तिरंगा फहराया है।
शहीद लेफ्टिनेंट उमर फैयाज
दक्षिण कश्मीर के जिला कुलगाम में बेहीबाग गांव में वर्ष 1994 में पैदा हुए उमर फैयाज ने दिसंबर 2016 में एनडीए से पॉस आउट हो, सेना की राजपूताना राइफल्स में बतौर लेफिटनेंट कमीशन हुए थे। उन्हें 9 मई 2017 की रात को आतंकियों ने उनकी ममेरी बहन की शादी के समय अगवा कर मौत के घाट उतार दिया था।
आतंकियों ने उनकी हत्या, उन्हें कश्मीरी नौजवानों में एक आदर्श बनने व स्थानीय युवकों को सेना व सुरक्षाबलों में भर्ती होने से रोकने के लिए की थी। लेकिन उनकी हत्या के बाद कश्मीर में जब कभी भी कहीं भी सेना द्वारा भर्ती अभियान चलाया गया, हजारों की संख्या में स्थानीय युवक सैनिक बनने की इच्छा के साथ आगे आए। इससे पहले उमर फैयाज के सेना में अफसर बनने से प्रेरित हो, अनंतनाग में पहलगाम के रहने वाले जुबैर अहमद इटटु भी एसएसबी की परीक्षा उत्तीर्ण कर सैन्याधिकारी बनने आफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी चेन्नई में दाखिल हुए।
हिम्मत, लगन और मेहनत की मिसाल हैं चनदीप सिंह
जम्मू के रहने वाले चनदीप सिंह हिम्मत, लगन और मेहनत की मिसाल हैं। फुटबाल उनका जुनून था, लेकिन वर्ष 2011 में, जब वह मात्र 14 साल के थे, दोस्तों के साथ खेलते हुए, 11 हजार वोल्ट के बिजली के झटके का शिकार हो गए। उनके दोनों हाथ काटने पड़े। फुटबाल छूट गया, लेकिन उन्होंने स्केटस अपने पैरों में पहन लिए और फिर बिना हाथों के ही कामयाबी की एक नयी दास्तां लिख डाली। वर्ष 2012 में उन्होंने सातवीं आल इंडिया रोलक स्केंटिंग प्रतियोगिता, मसूरी में कांस्य पदक जीता। फिलहाल इंजीनियरिंग की पढ़ाइ्र कर रहे चनदीप सिंह को उड़न सिख मिल्खा सिंह भी सम्मानित कर चुके हैं। गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्डस ने भी उन्हें 100 मीटर वर्ग में विश्व के सबसे तेज पैरास्केटर घोषित किया है।
जायरा वसीम ने दी बेटियों को नई पहचान
श्रीनगर में अलगाववादियों का गढ़ कहलाने वाले डाउन-टाउन मे हवल की रहने वाली दंगल गर्ल जायरा वसीम के अभिनय ने उसे ही नहीं कश्मीर की बेटियों को एक नई पहचान दी है। उसने साबित किया है कि मौका मिलने पर कश्मीर की बेटियां जिनके लिए अक्सर तालिबानी फरमान निकलते रहते हैं, अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए तैयार बैठी हैं।
उसकी सफलता के बाद से कश्मीर में बड़ी संख्या में अभिभावक अपनी बच्चियों को अभिनय और कला के क्षेत्र में प्रोत्साहित कर रहे हैं।
परवेज रसूल की लोकप्रियता
दक्षिण कश्मीर में बीजबेहाड़ा के रहने वाले परवेज रसूल अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कभी उन पर भी आतंकियों का समर्थक होने का आरोप लगा था। वर्ष 2009 में बेंगलुरु एयरपोर्ट पर सुरक्षाकर्मियों ने उनके बैग में किसी संदिग्ध वस्तु का हवाला देकर उनहें रोक लिया था।
राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने वाले परवेज रसूल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह कई स्थानीय कंपनियां अपने उत्पादों के लिए ग्राहकों केा आकर्षित करने के लिए उन्हें अपना ब्रांड एंबेसडर बना चुकी हैं। कश्मीर में उभर रहे नए क्रिकेट खिलाड़ी उन्हें अपना आदर्श मानते हुए, उनकी तरह मेहनत कर भारतीय क्रिकेट टीम की नीली जर्सी पहनने का सपना पाले हुए हैं।