रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से जहां एक ओर रोजगार की तलाश में युवा पलायन कर रहे हैं, वहीं रुद्रप्रयाग जिले के बर्सू गांव के विजय सेमवाल ने अपने गांव के पसरे सन्नाटे को दूर करने के लिए अपने गांव में 7 साल पहले वापसी की और आज वह युवाओं के सामने मिसाल पेश कर रहे हैं। चमोली जिले से अलग, इस जिले के गठन से पहले ही पलायन ने खूबसूरत बर्सू गांव को अपने आगोश में ले लिया था और यह गांव लगभग खंडहर में तब्दील हो गया था। कभी 60 से अधिक परिवारों की खुशियों का गवाह रहे इस गांव में चारों ओर सन्नाटा छा गया।
गांव में आज कई मकान पूरी तरह से टूट चुके हैं या फिर टूटने की कगार कर हैं। कई मकानों में झाड़ियां जम गई हैं। कई घर तो मानो अपनों का रास्ता देख रहे हैं। इस गांव के अधिकतर लोग नजदीक ही पुनाड गांव में बस गए हैं, लेकिन इस गांव से इस सन्नाटे को दूर करने का बीड़ा विजय सेमवाल ने उठाया। उन्होंने 2014 में घर वापसी कर गांव की बंजर भूमि को अकेले जोतने का काम किया। विजय ने यहां सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मुर्गी पालन के जरिए रोजगार की एक नई मिसाल पेश की है।
45 साल बाद गांव की माटी में हुई धान रोपाई तो नम हो गईं आंखें
विजय सेमवाल बताते हैं कि जहां एक ओर पूरा गांव पानी, शिक्षा, सड़क के अभाव में पलायन कर चुका है, खेत खलियान बंजर हो गए हैं, वहीं जब 45 साल बाद बर्सू गांव में धान रोपाई का अवसर आया, तो सभी की आंखें नम हो गईं। वह बताते हैं कि पहले जब लोग गांव में ज्यादा थे, तो पानी की कमी का सामना सभी ग्रामीणों को करना पड़ता था, लेकिन क्योंकि अब गांव वीरान हो चुके हैं, बहुत कम ही लोग गांव में बचे हैं इसलिए अब आसानी से पानी मिल जाता है, जिससे धान रोपाई की जाती है।
विभागों से मिली हर संभव मदद
विजय सेमवाल ने कहा कि मुझे विभागों से हर संभव सहायता मिली है। उद्यान विभाग, पशुपालन, कृषि सहित सभी विभागों ने समय समय पर मेरे पलायन रोकने के संकल्प को तवज्जो देकर हमेशा सहायता की है। जिले से लेकर देहरादून तक के अधिकारियों ने बर्सू गांव पहुंचकर मेरे आत्मविश्वास में वृद्धि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई लोगों ने स्वरोजगार के लिए मुझे मोटिवेट भी किया और मैं यही चाहता हूं कि पहाड़ का हर युवा रोजगार की तलाश में पलायन न करे और स्वावलंबी बने।
खेती से कमा रहे हैं अच्छा मुनाफा
विजय सेमवाल बताते हैं कि मैं सालाना ठीकठाक कमा लेता हूं, जिससे कि मैं बहुत खुश हूं। क्योंकि खेतीबाड़ी करना मेरा शौक भी है और पिताजी से खेतीबाड़ी भी सीखी थी, इसलिए मुझे इस काम को करने में आत्मसंतुष्टि मिल जाती है। साथ ही वह बताते हैं कि यदि प्रशासन से हमें और अधिक सहयोग मिलता है, तो हम बाजार में छोड़ी गई गायों को अपने क्षेत्र में लाकर गौ सेवा का काम भी कर सकते हैं। इसके लिए यदि प्रशासन द्वारा 100 टिन शेड हमें मुहैया करवाए जाते हैं, तो निश्चित तौर पर आवारा गायों को एक आश्रय स्थल मिल जाएगा।